कविताअन्य
हां साहेब मैं एक आंदोलन जीवी हूं
क्योंकि मैंने कमाया और खाया है,
ना कभी किसी को झूठा बरगलाया है,
कर मेहनत खेत में पसीना बहाया है,
पेट भरने को हर जीव का अन्न उगाया है|
नहीं आदत मेरी में शुमार, किसी पैसे वाले हाथों बिक जाना
ना ही हक अपना छोड़ता मैं, ना आदत किसी का हक खाना,
अपना कमा अपना खाता, दूसरों का खाने वाला ना परजीवी हुं|
हां साहेब मैं आंदोलन जीवी हूं
क्योंकि मैंने सरहदों पर खून बहाया है,
जवानी अपनी को वतन पे लुटाया है,
देखा जब भी मां भारती को बुरी नजर से,
किसी ने तो उसे औकात दिखाया है,
नहीं आदत मेरी में शुमार, होता गलत देख आंख मूंद लेना,
जानना हो गर मुझको तो, जरा गौरवमयी इतिहास में ढूंढ लेना,
खून खौलता है मेरा, समस्या देख दुबकने वाला ना डरजीवी हूं|
इसीलिए साहेब मैं आंदोलन जीवी हूं|
ना ही व्यर्थ की चकाचौंध मुझको भाती है,
ईमानदारी उसूल मेरा ना बेईमानी आती है,
गलत को गलत कहना खालिस धर्म मेरा,
सही का साथ देना यही मेरी जाति है,
नहीं आदत मेरी में शुमार बांटना समाज को जात पात के नाम पर,
इंसान को समझा इंसान और ध्यान दिया सिर्फ उसके काम पर,
हूं सीधा सादा वतन परस्त ना तुम सा राज करने को बुद्धिजीवी हूं|
हां 'माचरा' मैं आंदोलन जीवी हूं|
मैन पाल माचरा
एक किसान वंशज