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#संवेदना के बदलते रूप....
एक आम सी घटना हो गई। जो आए दिन या फिर कहे 24 घंटे में ना जाने कितने घटना होते ही रहती है।क्योंकि कुछ लोग से जवानी संभालती नहीं, जिसके लिए या फिर कह सकते हैं अपनी मर्दांनगी साबित करने के लिए झुंड बनाकर या फिर अकेले ही फिराक में घूमते रहते हैं।
अंजाम देने के लिए... और अंजाम देकर, उन्हें खुद पर गर्व होता है कि उसने आज फिर किसी की आवाज दबा दी....और अब कोई हिम्मत नहीं करेगा। उनके खिलाफ आवाज उठाने की....।
और फिर बड़े जोरों, शोरों से डंका बजने लगता है कि आज किसी ने किसी लड़की के साथ दुष्कर्म किया और इतना ही नहीं दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी.....और फिर उस लड़की के आबरू को समाज में बार- बार चिथड़े उड़ाई जाती है। उसे न्याय दिलाने के लिए....।
पर उसे न्याय तो नहीं मिलता। बल्कि उसे और उसके परिवार को शर्मिंदा होना पड़ता है बार- बार। और इस तरह प्रतिक्रिया भी आने लगती है और हमारे कुछ सो- कॉल्ड संवेदनशील लोगों की संवेदना जाग जाती है।पर उन बेचारे दरिंदों मनचलों लड़कों के प्रति।
जहाँ लोग जाते हैं न्याय के लिए। वही आगे आकर बचाते हैं उन्हें दरिंदों को....और साबित करने में लग जाते है कि वह तो बेचारे है और साबित कर भी देते हैं और हमारे समाज के कुछ लोग भी चल पड़ते हैं उन दरिंदों को न्याय दिलाने के लिए..... अरे! वह लड़की ही बदमाश होगी। ठीक हुआ उसके साथ ऐसा ही होना था। अरे! नहीं उसके माता-पिता ही झूठ बोल रहे हैं और यह सब और कोई नहीं जब एक नारी के मुख से ही सुनने मिले। तब और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं न्याय की, समाज से।
इतनी तो संवेदना भरी पड़ी है हमारे समाज में। जिसकी वजह से आए दिन हमें कुछ ना कुछ किसी ना किसी के साथ सुनने को मिल ही जाते हैं क्योंकि समाज में संवेदनशील लोग बहुत हो गए हैं ना। तो ऐसी घटना होना कोई आश्चर्य की बात तो नहीं और शायद कुछ दिन बाद इस देश में खुलेआम घुरेंगे अत्याचार करने वाले राक्षस।और हमें छिप के बैठना पड़ेगा घरों में। क्योंकि समाज में संवेदनशील लोगों की संवेदना बहुत जाग चुकी है। जो एक-एक करके समाज को दूषित करते जा रहे हैं और हम उसे दूषित समाज में रह रहे हैं।
क्योंकि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को ही आहुति देनी पड़ रही है और अन्याय करने वाले आहुति में घी डाल रहे हैं कहीं ना कहीं.....क्योंकि कहीं ना कहीं मानव संवेदना खोते जा रहे हैं लोग अंधे हो चुके हैं लोग राजनीतिक दाँवपेच में फँसते जा रहे हैं इंसान, इंसान के बारे में ना सोच कर जाति- धर्म के मोह में फँसकर अन्याय का खुलेआम साथ दे रहे हैं क्योंकि उन्हें अपना धर्म और जाति को बचाना है आगे बढ़ाना है इंसान को नहीं। बुराई और भ्रष्टाचार को नहीं। जिस वजह से धरती में गंदगी बढ़ती जा रही है।
हर एक जगह में चाहे आप किसी भी ओर झाँक के देख लो। आपको यही मिलेगा धोखा, छल,अंधा कानून,भ्रष्टाचार। और किसी ना किसी तरह घटना को अलग मोड़ देकर या फिर कहे....उसे मंजिल से भटका कर उसे कैसे दबाया जाता है। उसे अलग मोड़ पर ले जाकर खत्म करना। भुला देना बखूबी निभाया जा रहा है। हमारे देश में या समाज में। और न्यायाधीश आँखों में पट्टी बांँध के चले जा रहे हैं अन्याय को न्याय दिलाने के लिए या फिर कहे..... महाभारत के धृतराष्ट्र की सभा जैसी हो गई। हमारे देश की न्याय व्यवस्था जो आँख खोलकर भी अंधे हो गए, सुनके भी बहरे हो गए हो गए हैं और चुपचाप अन्याय का साथ दे रहे हैं भरी सभा में अन्याय को नजरअंदाज करके......।
@चंपा यादव
8/2/2021