कविताअतुकांत कविता
जब सारी आशायें टूट गयीं
और कुछ न रही आशा।
तब प्यासे मन की प्यास
बुझाने पनप गयी एक अभिलाषा।
हाथ में कलम उठाई तब
जब सारे सपने टूट गये
जिनको समझा था अपना
वो बीच में ही छोड़ गये।
अब नौका है कागज की
दूर दूर जल मन प्यासा
मन की प्यास बुझाने को
पनपी मन में एक अभिलाषा।
शब्द वही सब पर अर्थ बदले
लोग वही पर मर्म बदले
जीने के लिए जो चाह थी
वह बन गयी अब निराशा।
मन की प्यास बुझाने को
पनपी मन में एक अभिलाषा।