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"आख़िर कौन हो तुम" - कुलदीप दहिया मरजाणा दीप (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

"आख़िर कौन हो तुम"

  • 136
  • 8 Min Read

" आखिर कौन हो तुम"

आखिर कौन हो तुम
जो रूह में समा गये हो इस कद्र
ज्यों हिमालय की गोदी से
बहती उस निर्मल,पावन
गंगा की तरह !
भाव-विभोर हूँ मैं
तुम्हारी इस दूधिया सी
छरहरी काया को देख,
अपार,असीम संवेदनाओं
से परिपूर्ण, सुनहरे ख्वाबों
से लबालब तुम्हारी इन
झील सी कोमल
आँखों की चमक
बनाती है मदहोश मुझे !
आखिर कौन हो तुम...........!

तुम्हारे कपोलों की लालिमा
से रौशन हैं
मेरे दिल की महफ़िल,
कहर ढा रही हैं लहराती
ये रेशमी झुलफें
ज्यों तरुवर से लिपटती लताएँ
आतुर हों
अपने प्रिय से आलिंगन को !
आखिर कौन हो तुम...........!

जिसकी छनकती पैजनिया
की आहट से उठ रही हैं
मेरे सितार रूपी अंतर्मन में
प्रेम की तरंगें !
वो छुईमुई सा शर्माना
फिर चाँद से मुखड़े को
आँचल में छिपा लेना
वाकिफ़ हूँ मै तुम्हारी
इस आंख-मिचौनी से !

भोर की शबनमी बूँद सा
मोती की तरह परम्, पावन
ये कोमल सुनहरा ,कोमल बदन
महकता है कुमुदनी सा
बहती उस निर्झरी के
पश्चिमी छोर पे !
आखिर कौन हो तुम.............!

खामोश हो जाती है निशा भी
जिसके कंगन की खनक की
इक हल्की सी झलक पाने को,
बेताब रहता है,
रात का सन्नाटा भी
कि पूनम का चाँद कब आयेगा
क्षितिज के इस पार !
आखिर कौन हो तुम............!

जल रहा हूँ बन मैं "दीप"
इसी अरमां से
कि वो अनंत,अपार सा
रूप लेकर आये और कहे
कि चलो अब मैं कस्ती तेरी,
ले चलो जहाँ जिस पार
जाने की चाह है दिल में
आओ भरें परवाज़
और सिमट जाएं फिर
एक बिंदु पर समस्त आकांक्षाओ के साथ
जुदा हुए दो नादान विक्षिप्त परिंदे !!

कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप
हिसार ( हरियाणा )
संपर्क सूत्र-9050956788

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