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जवानों की सहनशक्ति - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायक

जवानों की सहनशक्ति

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जवानों की सहनशक्ति
विधा - परिचर्चा
(सिटीजंस वेलफेयर सोसाइटी में आज सभी सुबह का अखबार अपने हाथों में लेकर घर जाकर गरमा- गरम चाय की चुस्की के साथ खबरें पढ़ने के मूड में नहीं है बल्कि वहीं अखबार खोलकर कल के आए बजट पर चर्चा शुरू कर रहे हैं।इनमें हैं श्री गुलेरी जी, श्री गोयंकाजी, श्री शुक्ला जी और श्री चौधरी जी।आइए जाने क्या रही इनकी परिचर्चा।)
गुलेरी जी:भाई मैं तो पहले रक्षा बजट ही देखूंगा मेरे फौजी भाई जिस तरह अपनी जान की परवाह न करते हुए विषम परिस्थितियों में सीमा पर डटे रहते हैं, हमें उनके लिए सर्वप्रथम सोचना चाहिए। बधाई हो,रक्षा बजट में इजाफा हुआ है।सेनाओं के पेंशन बजट में 17000 करोड़ रुपए की आई कमी का फायदा उठाते हुए सरकार ने तीनों सेनाओं के लिए पूंजीगत आवंटन में पिछले बजट के मुकाबले करीब 19 फ़ीसदी की बढ़ोतरी की है।

गोयंकाजी: अच्छी खबर है ,मगर पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ बीते 9 महीनों से जारी सैन्य गतिरोध को देखते हुए रक्षा बजट में अपेक्षाकृत अधिक बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी।

चौधरी जी: गोयनका जी, ख़ज़ाने की भी चुनौतियों हैं।इधर करीब वर्ष भर से अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जिसने वित्त मंत्री को हाथ बांधने पर बाध्य कर दिया होगा।रक्षा उपकरणों की खरीद पर भी बहुत व्यय हुआ है।

शुक्ला जी:सही कहा,हाल ही में सेनाओं के लिए अत्याधुनिक हथियार और रक्षा सामग्री जुटाने पर भी खर्च हुआ है।

गोयंकाजी:वह बात तो दुरुस्त है, मगर जिस तरह हमारे जांबाज भारत- चीन और पाकिस्तान के बढ़ते खतरों के मुकाबले अपनी भौगोलिक सीमाओं की रक्षा के लिए चौकस हैं, सरकार को भी उनका हित सर्वोपरि रखना चाहिए।

गुलेरी जी: आपकी बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं।भारत की भौगोलिक और सामरिक परिस्थितियों के हिसाब से हमारे सैन्य बलों में अधिक कटौती की गुंजाइश नहीं है। वर्तमान सरकार सुरक्षा तंत्र को अधिक सक्षम और आधुनिक बनाने के प्रति गंभीर और संवेदनशील है।यह तर्कसंगत और विश्व के अन्य प्रमुख देशों के अनुरूप रखना अति आवश्यक भी है। विशेषकर चीन और पाकिस्तान के बढ़ते खतरों के मुकाबले अपनी भौगोलिक सीमाओं की रक्षा के लिए अति आवश्यक है।

चौधरी जी: हमारे जवान अपने पराक्रम और शौर्य के साथ विपरीत परिस्थितियों में अपनी सहनशक्ति के लिए विश्व में जाने जाते हैं।
भारत के पास चुस्त-दुरुस्त और एक अति आधुनिक सैन्य तंत्र के रूप में थल, जल, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम जवान है।चीनी अतिक्रमण वादी और पाकिस्तान का पूरा रक्षा तंत्र भारत के खिलाफ प्रत्यक्ष रूप से युद्ध तंत्र के रूप में काम कर रहा है।

शुक्ला जी:यह सहनशक्ति उन्हें घुट्टी में पिलाई जाती है।प्रशिक्षण
के दौरान उन्हें बेहद ही कड़ा अनुशासन पालन करना होता है।
जिससे वे मुश्किल से मुश्किल हालातों में भी दुश्मन का डटकर सामना कर सकें। एक जवान करीब 19 महीने के कड़े प्रशिक्षण से गुजरता है।
ट्रेनिंग के दौरान जवानों को भूख और प्यास से जूझने के तरीकों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

गुलेरी जी:उन्हें भूख, प्सास और नींद सब कुछ भूलना होता है। क्या यह सरल है? सैनिकों की सहनशक्ति को हर कदम पर कसौटी पर कसा जाता है।जवान की दिनचर्या के बारे में विचार करिए।हर दिन चुनौतीभरा , जंग की स्थिति में कई बार खाना तक नहीं पहुंच पाता या फिर दुश्मनों के रडार पर आने के बाद उन्हें अंडरग्राउंड होना पड़ जाता है।

गोयंकाजी:भाई मैं तो हमारे जवानों की बात करता हूं तो इनमें वे भी शामिल हैं जो प्राकृतिक आपदाओं में सहायता करते हैं, बाढ़, सूखा, महामारी एअरलिफ्ट करना हो, कानून व्यवस्था बनाए रखनी हो, वीवीआईपी की सुरक्षा हो, हर मुश्किल अवसर पर जिन की तैनाती हो और जिन से अपनी सुरक्षा की अपेक्षा हो वे जवान ही हैं। चाहे बीएसएफ, पुलिस फोर्स, पैरामिलिट्री या जल ,थल, नभ के जवान हों। मैं देश की रक्षा में लगे हर जवान की बात करता हूं। याद करें ,उन जवानों को जो पत्थरबाजों के हमले और लोगों के डंडे, धक्के सहते हैं,बावजूद इसके कि उनके हाथों में हथियार होते हैं। इन से अधिक सहनशक्ति की मिसाल कहां देखने को मिलेगी?

चौधरी जी: सियाचिन की माइनस 40 डिग्री ठंड हो अथवा मरुस्थल की प्लस 40 डिग्री तापमान हो,हमारे जवानों ने अपनी अदम्य सहनशक्ति का लोहा मनवाया है।

शुक्ला जी: अभी 26 जनवरी को जिस तरह देश असामाजिक तत्वों की करतूतों से शर्मसार हुआ।हमारे जवानों के साथ जिस तरह का अमानवीय व्यवहार किया गया।अगर उनमें सहनशक्ति ना होती तो न जाने लाल किला कितने नर-संहारों का दर्शक बन जाता! कितना रक्त पात होता!
सभी:बिल्कुल सही कहा।नमन है हमारी मां भारती के सपूतों को।इनके जैसी थोड़ी सी भी सहनशक्ति हममें आ जाए,तो जीवन सुधर जाए। धन्य हैं उनके माता- पिता। जय हिंद की सेना।
(सभी अपने घरों को प्रस्थान करते हैं)
गीता परिहार
अयोध्या

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दादी की परी
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