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बन्धन पवित्र प्यार का - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

बन्धन पवित्र प्यार का

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बन्धन पवित्र प्यार का ----
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विभा बड़बड़ाती जा रही थी शर्मा जी कल मै नहीं रहूंगी तब तुम्हें पता चलेगा कौन तुम्हारा ख्याल रखेगा । मेरी सुनते ही कहां हो कितना समझा चुकी सिगरेट बन्द करदो दिल के मरीज हो पर मै तो तुम्हारे लिये बकबक करती
हूँ ।
शर्मा जी अपलक विभा को चिर निन्द्रा में लीन देख रहे थे । आज सुबह से वह इस आवाज को सुनने को तरस गये । बड़ी बेटी पलक और बेटा अमोल दोनों मां के देहान्त की सुनकर आचुके थे और शर्मा जी से लिपट कर रो रहे थे । पूरी जिन्दगी वह पूरी तरह विभा पर निर्भर रहे थे । दो बेटो और दो बेटी के पिता थे पर उन्होंने विभा को कभी अधिक महत्व नहीं दिया हमेशा कहते तुम घर संभालो बच्चों को देखो पर विभा हमेशा उनका ख्याल रखती थी ।आज इस माहौल में वह अपने को बिलकुल अकेला महसूस कर रहे थे । उसकीअन्तिम विदाई की तैयारी में चल रही थी । वह सोच रहे थे काश विभा अब भी उठ जाये तो वह उसको अकेले नहीं रहने देगे साथ रहेगे और उससे अपनी गलतियों की माफी मांगलेगे पर ये मुमकिन नहीं था । जैसे ही अर्थी उठी बच्चे बहुत रो रहे थे कि पापा की इतनी देखभाल कौन करेगा । अचानक शर्मा जी के दिल पर दर्द उठा और वह जमीन पर गिर गये । जब तक सब समझ पाये तब तक शर्मा जी भी विभा के साथ प्रस्थान के लिये निकल चुके थे। ये था पवित्र प्रेम का अनोखा बन्धन ।
स्व लिखित
डा.मधु आंधीवाल
अलीगढ़

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