कविताअतुकांत कविता
# जीवनसाथी
हमसफर हमें साथ चलना है।
जल रहे दीया और बाती जैसे हमें भी जलना है।
यदि तुम अर्धांगिनी हो मैं भी व टुकड़ा आधा।
दुख के साथी हर पथ पर खड़ा रहूंगा है ये वादा।
तुम से ही हर अभिलाषा अब हर उन्मेश तुम्हीं से।
कर्कश सब कुछ तुम बिन जीवन संगी तुम्हीं से।
तुम से ही घर की रौनक है तुमसे ही हैं तीज त्यौहार।
प्यासे सूखे इस उपवन की तुम ही हो अमृत बौछार।
घर आंगन सूना लगता। शयनकक्ष नरक के द्वार।
तुम बिन अधूरा लगता मेरा सारा साज सिंगार।
दुख की बेला कोई न रह जाता साथी।
कठिनाई के पथ पर राह दिखाता जीवनसाथी।
सात फेरों में सात वचन मैंआजीवन उसे निभाऊ।
प्रभु की सेवा कर हर जन्म तुम ही को प्रियवर पाऊं।
जीवन के बस यही स्वप्न है ।
मै प्रेम सरिता बन ।
तुम्हारे हृदय प्रेम सुधा बरसाऊ।
सरिता सिंह गोरखपुर
उत्तर प्रदेश स्वरचित मौलिक रचना