कविताअन्य
विधा:तांका
शीर्षक:संरक्षण
१.
जल की कमी
प्रकृति का दोहन
ये प्रदूषण
मानव का अस्तित्व
अब असुरक्षित।
२.
पर्यावरण
चाहता संरक्षण
अत्यावश्यक
सीमित संसाधन
वैकल्पिक व्यवस्था।
३.
हो संस्कृतियां
सुरक्षित औ स्थिर
परम्पराएं
स्वीकृत- संवर्धित
औ लघु जनसंख्या।
४.
निर्झर धारा
अविरल नदियां
घने जंगल
ये पठार-पहाड
बचा लो प्रकृति को।
गीता परिहार
अयोध्या