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बहारें आ गई - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बहारें आ गई

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बहारे आ गई
ख़बर तेरी क्या आ गई
चमन की बहारें आ गई

खुशबू तेरी समाँ में समाई
साँसों में मेरे जान आ गई

खयालों में क्या आया तू
ख़्वाबों में खुमारी आ गई

मेहबूब का एहसास ऐसा
ज़िन्दगी में रवानी आ गई

दरियाए-दिल के तूफां में
यादों की कश्ती आ गई

बैठी हूँ आइने के सामने
कैसे सजू संवरु मैं सनम

मेहँदी पिया के नाम रची
बाजे पैंजन मोती बिछिए

किनारी सितारों से जड़ी
बासंती झीनी ये ओढ़नी

कंगना झुमके टीका बिंदी
मंगलसूत्र हार हीरा मुंदरी

बहुरि बेर मैं निरखू दर्पण
कजरा नैनों में बिसर गई

कुंतल घुंघराले बाँध लिए
कलियाँ ग़जरे की महकी

हर आहट व दस्तक पे मैं
मचले धड़कन,कैसे रोकू

विभावरी अब बीतन को
ये चाँद भी मुझपे है हाँसे
सरला मेहता

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