कवितालयबद्ध कविता
( भारत परंपराओं का देश है. हर सुंदर परंपरा के पीछे एक दिव्य आस्था और हर आस्था के पीछे एक अद्भुत, अलौकिक चेतना छिपी रहती है. प्रस्तुत है चेतना के धरातल पर आस्था और परंपरा का एक तुलनात्मक चित्रण )
परंपरा यदि देह है तो आस्था है आत्मा
परंपरा संसार है तो आस्था परमात्मा
परंपरा मिट्टी की खुशबू, आस्था है मलय पवन
परंपरा धरती की गोदी, आस्था है आसमाँ
दिखते कण-कण में नारायण, कंकर-कंकर में शंंकर
बस आस्था की दृष्टि से और परंपरा के भूतल पर
उठें तरंगें चेतना की, मन-सरिता में उमड़-उमड़कर
बन ज्वार दिव्य आस्था का, अद्भुत परंपरा के तट पर
परंपरा अभिवादन है तो आस्था संवेदना
परंपरा है चिंतन तो फिर आस्था है चेतना
परंपरा है शब्द-रचना, आस्था एक भाव है
परंपरा सुख-भवन ,आस्था माँ के आँचल की छाँव है
परंपरा साकार संस्कृति, आस्था है निराकार
है शिष्टाचार परंपरा तो आस्था है संस्कार
परंपरा है अभिव्यक्ति तो आस्था अहसास है
है परंपरा अभिषेक, आस्था शिवदर्शन की प्यास है
परंपरा है काशी तो फिर, आस्था है गंगाजल
परंपरा है भोग छप्पन, आस्था है तुलसीदल
परंपरा पद्मासन है तो आस्था है सजल नयन
परंपरा गोपी की मटकी, आस्था मोहन का माखन
परंपरा अर्चन की थाली, आस्था है दीप-ज्योति
परंपरा है सीपी, आस्था स्वाति-बिंदु जो बनती मोती
परंपरा है जपमाला तो आस्था हरिनाम है
है परंपरा अयोध्या तो फिर आस्था श्रीराम है
परंपरा अर्चक की अर्जी, आस्था है हस्ताक्षर
है परंपरा त्रिमूर्ति तो फिर आस्था है प्रणवाक्षर
परंपरा है वंशीवट तो आस्था यमुना का पानी
है परंपरा वृंदावन तो फिर आस्था राधा रानी
है परंपरा एक फूल सुंदर, आस्था है मधुर पराग
परंपरा है वस्त्र वल्कल, आस्था मन का वैराग्य
परंपरा है शरदपूर्णिमा, आस्था मुरली का राग
बनकर गोपी-श्याम करें जीवन के वृंदावन में रास
द्वारा : सुधीर अधीर