कविताअतुकांत कविता
तो देश होता है
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जब दुरभिसंधि में
बुरी तरह घिरा अभिनंदन
अपने प्रबल रण-कौशल से
दुश्मनों के चक्रव्यूह को तोड़कर
अपनी मातृभूमि को चूमता है
तो देश होता है।
जब हड्डियों तक को
गला देने वाली ठंड में
कंधे पर बंदूक टाँगे
सरहदों की निगहबानी में, सैनिक
बर्फीली हवाओं को झेल जाता है
तो देश होता है।
जब सपनों के पंख लगाए
आसमान फतह करती कोई नीरजा
मुश्किल हालातों में
सैकड़ों जानों की हिफाज़त को
अपनी जान पर भी खेल जाती है
तो देश होता है।
जब अपनी उम्मीदों का आसमाँ बनाने
बादलों का सीना चीरकर
बोइंग विमान उड़ाकर कोई जोया
दुश्मनों के दिल दहलाती है
तो देश होता है।
जब प्रचंड जयघोष के साथ
गाँव की गलियों से गुजरती है
तिरंगे में लिपटी किसी शहीद की अर्थी।
और पोते को फौज में भेजने की
फ़ख्र से कसम खाते हैं पिता
तो देश होता है।
जब विरोधाभासों के दौर में भी
राष्ट्रीय अस्मिता के रक्षार्थ
कौम और मजहब की दीवारें तोड़कर
एकजुटता की मिसाल बनकर
करोड़ोंं हाथ एक साथ मिल जाते हैं
तो देश होता है।
जब शान से लहराता है तिरंगा
और कोटि-कोटि कंठों से उच्चरित
जन-गण-मन का समवेत स्वर सुन
कदम जहाँ-के-तहाँ जाते हैं ठहर
तब देश होता है।
जब हवाएँ सुनाएँ आजादी के तराने
और ज़र्रे-ज़र्रे में गूँजे
मेरा रंग दे बसंती चोला
तो वतन पर मर-मिटने की चाहत में
रगों में उठती है खून की लहर
तो देश होता है।
- विजयानंद विजय
बेहतरीन.. भावपूर्ण शानदार सृजन
धन्यवाद