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मैं दिल्ली हूँ दिल्ली - Dr. Rajendra Singh Rahi (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

मैं दिल्ली हूँ दिल्ली

  • 156
  • 6 Min Read

गीत (मैं दिल्ली हूँ दिल्ली )....

बहुत हो चुका अपना दिल तो मिलाओ
मैं दिल्ली हूँ दिल्ली, न मुझको जलाओ..

वो काफ़िर लुटेरा, वो गद्दार अपने
लिया छीन जिसने निगाहों के सपने
सहा दर्द मैंने सितम कितना ज्यादा
निभाया किसी ने नहीं अपना वादा
पिया है बहुत मैने जो विष का प्याला
वही विष दुबारा न मुझको पिलाओ
मैं दिल्ली हूँ दिल्ली, न मुझको जलाओ ..
बताता है इतिहास हर एक कहानी
मिटाया था किसने हमारी निशानी
बहा रक्त न जाने कितना बदन का
नहीं रोष दिखता अब भी सदन का
अभी भी हरे घाव दामन पर अपने
नहीं पास मरहम, नमक न लगाओ
मैं दिल्ली हूँ दिल्ली, न मुझको जलाओ..
ये लाठी, ये तलवार, पत्थर ये गोले
निकलते हुए घर से धुआँ व शोले
ये गुस्सा, ये मातम, ये सूनी हवायें
डरी, सहमी अपने चमन की फ़जायें
नहीं उनका जायेगा कुछ, जो सपोले
समझदार बन बात में अब न आओ
मैं दिल्ली हूँ दिल्ली, न मुझको जलाओ ..
ये नफरत ये हिंसा से कुछ न मिलेगा
अमन से ही अपना चमन ये खिलेगा
मेरे भाग्य में क्या लिखा बस है रोना!
कलेजे के टुकड़ों को लड़कर यूँ खोना
सियासत के वो पहृरेदारों सुनो... सब
नहीं मुझमें हिम्मत रहम अब दिखाओ
मैं दिल्ली हूँ दिल्ली, न मुझको जलाओ...

बहुत हो चुका अपना दिल तो मिलाओ
मैं दिल्ली हूँ दिल्ली, न मुझको जलाओ ..

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'

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