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जाड़े की यात्रा - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

जाड़े की यात्रा

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जाड़े की यात्रा
यह 1991 की दशहरे की छुट्टियों की बात है। मैं अपने स्कूल की तरफ से बच्चों के एक समूह को लेकर कुल्लू मनाली ट्रैकिंग के लिए फैजाबाद से अपने तीन सहयोगी शिक्षकों के साथ गई थी।
हमने फैजाबाद से लखनऊ 3 घंटे, फिर लखनऊ से चंडीगढ़ रेल द्वारा लगभग 11 से 12 घंटे और चंडीगढ़ से मनाली बस रुट लगभग 6 -7 घंटे।इस तरह लगभग 2 दिन लग गए। चंडीगढ़ से बस रुट नैशनल हाइवे-21 से होकर गुजरता है जो रोपड़, बिलासपुर और मंडी होकर जाता है।
चारों ओर से पहाड़ों से घिरे रोमांचक दृश्य मन मोह लेते हैं।यह जगह एडवेंचर स्पोर्ट्स और स्वभाव था एडवेंचरस लोगों के लिए बेहतरीन जगह है।यहां हम 'यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कैंप द्वारा आयोजित 10-दिवसीय स्कीइंग, हाइकिंग (लंबी पैदल यात्रा), पर्वतारोहण, राफ्टिंग, ट्रैकिंग और साइट सींग प्रोग्राम मैं भागीदारी के लिए आए थे।
इसमें रुमसू,चन्द्राखनी, मलाणा और रोहतांग पास ट्रैकिंग शामिल था।रुमसु कुल्‍लु से 25 कि॰मी॰ दूर नग्गर से पूर्व की ओर 7 कि॰मी॰ जाकर है।जबकि
प्रसिद्ध रोहतांग पास 53 किलोमीटर दूर है।
सुबह सुबह 5:00 बजे बेल बज जाती थी।कैंप की सख्त अनुशासित दिनचर्या थी। कुडकुडाती ठंड में उठना, एक्सरसाइज के लिए मैदान में एकत्रित हो जाना। फिर जलपान के लिए पंक्ति बंद होकर अपना जलपान लेना। अपने बर्तन खुद साफ करना। फिर उस दिन की दिनचर्या के बारे में सूचना मिलने पर झटपट सामान बांध कर तैयार हो जाना।

हम रोजाना लंबी पैदल यात्रा, पर्वतारोहण और ट्रैकिंग से चूर-चूर हो जाते।अक्सर बारिश होने लगती,तब पीठ पर लदा रगसैक भीगकर भारी हो जाता।एक -एक कदम संभल कर रखना होता। फिसलने का डर बना रहता।फिसल भी जाते।चोटें भी लगतीं और लगती बला की सर्दी।
मगर रोमांच लेना है, तो कुछ मेहनत करनी ही थी। रात को जब अगले कैंप पहुंचते, बोन फायर होती। आग के इर्द-गिर्द सब बैठ जाते।गरमा -गरम कॉफी के सिप लेते, बढ़िया मजेदार खाना खाते।भिन्न- भिन्न प्रांतों के बच्चे अपने- अपने प्रांत के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते, तब दिन भर की थकान फुर्र हो जाती।अपना यहां आना सार्थक लगने लगता।
दुर्भाग्य से रुमसू पहुंचने पर हमने देखा कि बर्फ की चादर किसे कहते हैं।बच्चों ने स्कीईंग का भरपूर आनंद लिया।ट्रैकिंग कभी-कभी इतनी मुश्किल हो जाती थी, खड़ी पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ता था।लौटते हुए हर एक को लकड़ियों के बड़े-बड़े लट्ठे लेकर आने होते थे, जिन्हें हम खींचते हुए लाते थे। तब हमें इस कदर गर्मी लगती कि अपने ऊनी कपड़े अपने गले में लपेट लेते थे। रिवर राफ्टिंग भी खतरों से भरा हुआ, मगर बहुत ही रोमांचकारी अनुभव रहा।
हमें बताया गया कि आखिर के तीन दिवस आसपास के दर्शनीय स्थल की यात्रा के लिए रखे गए हैं।
वह 7 दिन हमने चाहे कठिनाई में गुजारे थे मगर उनकी अमिट छाप आज तक जेहन में है ।आखिरी 3 दिनों में जिन रमणीय स्थलों का दर्शन किया उनमें पहला था,
नाग्गर किला,यह मनाली के दक्षिण में स्थित है।यह पाल साम्राज्य का स्मारक चट्टानों, पत्थरों और लकड़ियों की समृद्ध और सुरुचिपूर्ण कलाकृतियों का सम्मिश्रण है। इस किले को एक होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। यहां हम सभी ने फोटोग्राफी की और अच्छे भोजन का आनंद लिया।
उसके बाद हमारा अगला पड़ाव था हिडिम्बा देवी मंदिर।
हिडिम्बा देवी, भीम की पत्नी को समर्पित 1553 में निर्मित यह मंदिर अपने चार मंजिला शिवालय एवं विलक्षण काठ की कढ़ाई के लिए जाना जाता है।
जब यह मालूम हुआ कि अगला पड़ाव झरने हैं तो ठंड में पानी की कल्पना मात्र से सिहरन हो गई।यह रोहतंग मार्ग की चढ़ाई के आरम्भ में मनाली से 27 कि॰मी॰ (89,000 फीट) स्थित खूबसूरत रहला झरनें हैं।यहां प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर दिखाई देता है।
बर्फ बिंदु (स्नो पॉइंट) सोलंग घाटी मनाली के 13 किमी. उत्तर पश्चिम में है। सुरम्य घाटी आंखों को शीतलता और मन को एक सिहरन और अलौकिक आनंद से भर देती है।
कुल्‍लू घाटी को पहले कुलंथपीठ कहा जाता था।जिसका शाब्दिक अर्थ है ,रहने योग्‍य दुनिया का अंत, जो अपने आप में शब्द शाह सत्य है।कुल्‍लू घाटी भारत में देवताओं की घाटी रही है।यह अनोखे दशहरा के लिए प्रसिद्ध है।यहां दशहरे में रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन नहीं किया जाता। सात दिनों तक चलने वाला यह उत्‍सव हिमाचल के लोगों की संस्‍कृति और धार्मिक आस्‍था का प्रतीक है।उत्‍सव के दौरान भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है। यहां के लोगों का मानना है कि करीब 1000 देवी-देवता इस अवसर पर पृथ्‍वी पर आकर इसमें शामिल होते हैं। हमें आत्मिक आनंद मिला ऐसी पावन धरती पर आए हैं।
दूसरे दिन हम रघुनाथजी के मंदिर के दर्शन करने गए, जो हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्‍थान है।17वीं शताब्‍दी में निर्मित सिल्‍वर वैली के नाम से मशहूर यह जगह केवल सांस्‍कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के लिए ही नहीं बल्कि एडवेंचर स्‍पोर्ट के लिए भी प्रसिद्ध है।
इसके साथ ही हमने व्यास् नदी में दिन की कुनकुनी धूप में वॉटर राफ्टिंग का मज़ा लिया।यहां ट्रैकिंग भी की जा सकती है।इस सुझाव मात्र से बच्चे एक सुर में नहीं- नहीं करने लगे।
नगर में रूसी चित्रकार निकोलस रोरिक की चित्र दीर्घा है, ऐसा हम सुन चुके थे। उसे देखने के लिए हम बहुत उतावले हो रहे थे। अद्भुत संग्रह देखा इस चित्र दीर्घा में!
यहां विष्‍णु, त्रिपुरा सुंदरी और भगवान कृष्‍ण के प्राचीन मंदिर भी हैं मगर सब इतना थक गए थे कि वहां तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और भी बहुत से स्थान जो हम नहीं देख पाए उनमें से एक था,
जगतसुख,यह कुल्‍लु की सबसे प्राचीन राजधानी है। यह विज नदी के बायीं ओर नग्गर और मनाली के बीच स्थित है। यहां दो प्राचीन मंदिर हैं। पहला छोटा सा गौरीशंकर मंदिर और दूसरा संध्‍या देवी का मंदिर है।
तीसरा दिवस दर्शनीय स्थलों का भ्रमण प्रारंभ हुआ देव टिब्बा देखने से।यह समुद्र से 2953 मी. की ऊंचाई पर स्थित है।इसे इंद्रालिका के नाम से भी जाना जाता है।यहां से कुछ दू‍री प‍र सरेऊल्सर नाम की झील है, जो देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के हरे भरे जंगल से घिरी सुन्दर झील है।यहां तीर्थन नदी बहती है। नदी के जल में हाथ और पांव डालने का मतलब था जम जाना,मगर बच्चे तो बच्चे ठहरे खूब मस्ती की।
अगली सुबह ही वापसी थी। इतनी अनुपम, अद्भुत, अविस्मरणीय यात्रा के बाद लौट आना! हम फिर आएंगे ऐसा निश्चय कर लौट पड़े।
गीता परिहार
अयोध्या

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दादी की परी
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