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समाधान - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

समाधान

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समाधान

बहु जुही आफिस से आ सासूमाँ आभा जी से चहकते हुए कहती है," मम्मी आपकी भाकरवड़ी व रसगुल्ले सबको बहुत पसंद आए।आपके हाथों में तो कमाल है।" कमरदर्द से कराहती आभा पुनः रात के खाने की तैयारी में जुट जाती है।चपातियां महरी रानी बनाती है।बाकी सब्ज़ी वगैरह आभा स्वयं तैयार करती है,पाक कला में निपुण जो है।बहु अक्सर कहती है,"मम्मी मुझे भी आपसे सीखना है लेकिन सब कुछ तैयार मिल ही जाता है तो कौन मेहनत करे।और फिर बहु को फुरसत कहाँ?
शेखर जी से पत्नी आभा की हालत देखी नहीं जाती।एक दिन उनके दिलो दिमाग में चल रहा ज्वारभाटा
फट पड़ता है। वे ऐलान कर देते हैं , "कल से पूरा खाना रानी ही बनाएगी।" अगले दिन रानी के हाथ का खाना जुही को रास नहीं आता और वह बोल पड़ती है,"सच,मम्मी के हाथ के खाने का तो जवाब नहीं।" शेखर जी मौके का फायदा उठाते हुए बहु को समझाते हैं," बेटा, अब अपनी मम्मी को रिटायर करो।तुम इतनी समझदार हो,खुद सीख कर रानी को भी सिखाओ।"
जुही तपाक से बोलती है,
" ठीक है पापा,आठ दिन की छुट्टी लेकर मम्मी से ट्रेनिंग लेती हूँ।" शेखर पत्नी की ओर देख मुस्कुराते हैं।
सरला मेहता
इंदौर

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

उचित समाधान.!

दादी की परी
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