कविताअतुकांत कविता
मां
मैने स्वर्ग तो नहीं देखा ,
पर मां को देखा है ,
बिन मां के मै कहां थी,
ना वह गोद थी ना वह बाहें थी,
ना वह आंचल की छांव थी ,
अब तो मां सच में बहुत याद आती हो,
वह रात में सर को सहलाना ,
और डांट कर सुला देना,
दिन भर बहुत थकती हो ,
अब बेटा आराम करो ,
अब तो मै भी मां हू पर
अब कोई मुझे बेटा नहीं कहता .
डा.मधु आंधीवाल