कहानीलघुकथा
जनवरी की ठंड
लाँग कोट
दाँत कटकटाती जनवरी की ठंड, घर से बाहर भी निकलना अर्थात बर्फ़ से जम जाना। चीनू ने ज़िद ही पकड़ ली, " नहीं मुझे अपूर्व जैसा लाँग कोट चाहिए वरना कल मैं स्कूल नहीं जाऊँगा।" नीला सोच में पड़ गई , "सुनो अखिल, " चीनू का कल पेपर है। चलो चलते हैं बाज़ार। "
तीनों गर्म कपड़े लादे दुकान पर जा कोट देखने लगे। चीनू मिया अड़ गए, " एक पूरा गर्म सूट और मोटा कम्बल भी लो।" पापा को कुछ बात समझ ना आई। फ़िर भी सब ख़रीद लिया। चीनू बोला, "मम्मा मुझे दोस्त से कॉपी लेना है, वही जो अपनी कामवाली आंटी के पास रहता है। जैसे ही वहाँ पहुँचे चीनू झट से पैकेट उठा आंटी के घर की ओर बढ़ गया। अथर्व कुछ समझ ना पाए। शुचि ने इशारा किया, " रुको देखते हैं, क्या करता है। वो आंटी के बेटे को देने गया होगा। कल भी पुराने कपड़ा ढूंढ रहा था कि आंटी का बेटा ठिठुराता हुआ स्कूल जाता है। " चीनू आकर सुकून से कार में बैठ जाता है।
सरला मेहता