कहानीलघुकथा
लगता है अबकी जनवरी की ठंड कहर ही ढायेगी। ठंड के साथ साथ बारिश ने भी जीना मुहाल कर दिया है,पता नहीं कब सर्दी खत्म होगी और कुछ सुकून मिलेगा। बालेश्वर जी खांसते हुए बोले।
अपने पापा की बात सुनकर सुधीर बोला आप सर्दी बीतने की दुआ मना रहे हैं और मैं सर्दी के और अधिक पड़ने की व लंबा खिंचने की दुआ मना रहा हूं।आप ये क्यों भूल जाते हैं कि आपको जो आराम और सुविधायें मिल रही हैं वो सब मेरी ही वजह से है और मेरी रोज़ी रोटी का ज़रिया मेरा गर्म कपड़ों का व्यवसाय है।अगर अभी से ठंड खत्म हो गई तो गर्म कपड़ों की डिमांड खत्म हो जायेगी और गोदाम में जो माल भरा पड़ा है वो बिकने में आ नहीं पायेगा।इतना लाॅस मैं उठा नहीं पाऊंगा,जीते जी ही मर जाऊंगा।
बालेश्वर जी बोले अरे अस्थमा से परेशान रहता हूं तो इसीलिए सर्दी से जल्दी से जल्दी निजात चाहता हूं पर तू चिंता मत कर,मैं भगवान से सर्दी लम्बी करने की ही अब प्रार्थना करूंगा।तुझे आर्थिक रूप से कोई लाॅस नहीं होना चाहिए भले ही.............अपना वाक्य अधूरा छोड़कर वो कमरे में चले गये।सुधीर उनकी बात के मर्म को समझ ना सका क्योंकि उसे तो ठंड के सिवा कुछ सूझ ही नहीं रहा था।
यदि यह रचना प्रतियोगिता 19-1-2021 टैग ऐड कर दीजिये।
जी शुक्रिया
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