कहानीसामाजिकप्रेरणादायक
आगे कहानी में क्या हुआ जाने इस भाग में ,,, ,,
मेरी यह तकलीफ आज की नहीं, उस वक्त की है जब मेरी उम्र मुश्किल से 10-11 वर्ष रही होगी, हम तीन भाई बहन थे हां 3 !!!तुम्हारे दादा को और ना तुम लोगों को पता है मेरी एक बड़ी बहन भी थी| मां ने हम दोनों बहनों को बड़े लाड़-प्यार से पाला, बाबूजी चाहते थे समय रहते हमारा ब्याह हो जाए पर ,मां ने कहा "-नहीं 15 वर्ष के पहले अपनी बेटियों की शादी नहीं करूंगी "|
मां -बाबूजी मैं हमेशा हम दोनों को लेकर लड़ाईयां होती थी, क्योंकि हम लड़कियां थी ,और बाबूजी हमेशा मां को कोसते रहते थे इस बात के लिए |बसंत उस वक्त छोटा था |मालती जीजी जब 15 वर्ष की हुई तब बाबूजी ने जीजी के लिए एक ऊंचे घराने का रिश्ता ढूंढ लिया| क्योंकि मां ने हम दोनों बहनों को लाड़ प्यार में पाला था,तो ज्यादा घर का काम हमें सिखाया नहीं गया था |शादी के बाद जीजी को बड़ी परेशानी आई ,मालती जीजी के ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी डाल दी गई ,और उसे दहेज के लिए परेशान करने लगे| मालती जीजी जब भी घर पर आती मां को अपना दुख बताती| मां बाबूजी को कुछ बोलती, तो बाबूजी उल्टा मां को मारते |मालती जीजी की शादी को 6 महीने भी नहीं हुए थे ,और एक दिन मालती जीजी की मौत की खबर आई| दहेज की मांग और उस पर ससुराल वालों का अत्याचार ,जीजी सहन नहीं कर पाई और आत्महत्या कर ली |इतना सब कुछ होने के बाद भी बाबू जी ने जीजी के ससुराल वालों को एक शब्द भी नहीं कहा| उल्टा बाबू जी ने मां को कोसना और उन्हें मारना शुरू कर दिया ,बेटी के गम से मां वैसे ही दुखी थी और उस पर बाबूजी का यह अत्याचार |जीजी की मौत को साल भर भी नहीं गुजरा था ,और एक दिन !!मां बाबूजी खेत के काम से दूसरे गांव गए हुए थे, तब गांव का ही एक युवक हमारे घर में घुस आया ,बसंत छोटा था वह घर के बाहर खेल रहा था ,और उसने मुझे,कहते-कहते शांति देवी का गला भर आया बड़ी मुश्किल से शांति देवी ने अपने आप को संभाला और कहा"- मैं बड़ा रोई -चीखी चिल्लाई पर वह जानवर की तरह मुझे नोच रहा था ,उस पल को मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई मेरी आत्मा निकाल कर ले जा रहा हो "|
बदनामी के डर से बाबूजी ने किसी से कुछ भी नहीं कहा ,और मुझे भी समझाया मैं किसी को कुछ ना बताऊं| एक- एक पल, एक-एक दिन मैंने कैसे गुजारा है मैं ही जानती हूं| बाबूजी हर वक्त मां को ही दोष देते"- तुमने ही मेरे घर को बर्बाद किया है, तेरी बेटियों की वजह से मुझे आज यह दिन देखना पड़ा है ,तुम और तेरी बेटियां अभिशाप है मेरे लिए "|इतने दुख दर्द के बाद अब मां को भी लगने लगा था ,शायद हम दोनों बहनों को पैदा करके उसने कोई गुनाह किया है, मन ही मन घुटते रहती और मुझसे बात नहीं करती| जब मां बीमार हुई ,तब मैंने मां को दवाई देना चाहा, पर!! मॉ ने मेरा हाथ झटक दिया और मुझसे कहा"- हाथ मत लगाना मुझे ,तुम बेटियों की वजह से मेरा जीवन बर्बाद हो गया है, तुम दोनों को मैंने जन्म ही क्यों दिया ,गर्भ में ही तुम्हें मैंने क्यों नहीं मार दिया, तुम बेटियां वरदान नहीं अभिशाप हो मेरे लिए"| 2 दिन बाद दुख- तकलीफ और बीमारी की वजह से मां का स्वर्गवास हो गया |मां के देहांत के बाद अब मुझे भी लगने लगा था ,हम बेटियां ही मां की मौत का कारण है, हमारी वजह से मां को इतना दर्द हुआ, बाबूजी को इतना अपमान और तकलीफ देखनी पड़ी, घृणा होने लगी थी मुझे अपने आप से |
मां के देहांत के बाद बाबूजी ने वह गांव छोड़ दिया, हम दोनों भाई बहन को लेकर बाबूजी नए गांव आ गए ,जहां हमने नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरु की|
अागे क्या हुआ जानिए अगले भाग में
स्वरचित कहानी
टीना सुमन