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अधूरी ख्वाहिश - Vandana Bhatnagar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

अधूरी ख्वाहिश

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  • 3 Min Read

#जनवरी की ठंड

कोहरा,पाला,गिरना बर्फ का ,है सर्दियों की सौगात
देखी अबकी जनवरी में हमने संग इनके मूसलाधार बरसात
जनवरी की ठंड में किटकिटाते दांत और सुन्न होते मेरे हाथ
ख्वाहिश यही बैठ जाऊं लिहाफ में या सेक लूं हाथ
तभी सुनाई देती घर में से किसी की आवाज़
ठंड बहुत है गर्मागर्म बना दो कुछ आज
कोई गर्मागर्म पकौड़े तो कोई सूप की करता मांग
किसी को गाजर का हलवा तो किसी को चाहिए सरसों का साग
फिर फरमाईशें पूरी करने का दौर हुआ शुरू लगाकर ख्वाहिशों में आग
अब ठंड का अता पता ना था,ना जाने कहां गयी थी भाग

मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

यदि यह रचना प्रतियोगिता हेतु है तो कृपया 19-1-2021 टैग ऐड कर दीजिये।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

आदरणीया जब आप रचना एडिट करती हैं और विभिन्न विकल्प का चुनाव करती हैं तो उन्ही विकल्प में एक विकल्प ऐड a टैग का ऑप्शन रहता है। आप वहां पर जनवरी की ठंड लिख दीजिये टैग ऐड हो जाएगा।

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