कवितालयबद्ध कविता
#जनवरी की ठंड
कोहरा,पाला,गिरना बर्फ का ,है सर्दियों की सौगात
देखी अबकी जनवरी में हमने संग इनके मूसलाधार बरसात
जनवरी की ठंड में किटकिटाते दांत और सुन्न होते मेरे हाथ
ख्वाहिश यही बैठ जाऊं लिहाफ में या सेक लूं हाथ
तभी सुनाई देती घर में से किसी की आवाज़
ठंड बहुत है गर्मागर्म बना दो कुछ आज
कोई गर्मागर्म पकौड़े तो कोई सूप की करता मांग
किसी को गाजर का हलवा तो किसी को चाहिए सरसों का साग
फिर फरमाईशें पूरी करने का दौर हुआ शुरू लगाकर ख्वाहिशों में आग
अब ठंड का अता पता ना था,ना जाने कहां गयी थी भाग
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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