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जनवरी की सर्दी - Sangeeta Mishra (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

जनवरी की सर्दी

  • 95
  • 4 Min Read

मत ढा इतने सितम
कब तक सहेंगे ये ठिठुरन

न ओढ़ने को कंबल ,रजाई
न ढकने को छत ही बनाई

तू यूँ रोज बर्फ उड़ाएगा
तेरा यह हाड़ मास कहाँ सर छिपाएगा

मत ढा इतने सितम
कब तक सहेंगे ये ठिठुरन

पानी भी गर्म नसीब नहीं
क्यूंकी चूल्हा भी बर्फ मे दबा कहीं

बर्फ को पीना मेरे बस मे नहीं
पिघला दे तू सूरज निकाल तो सही

मत ढा इतने सितम
कब तक सहेंगे ये ठिठुरन

हड्डी तक मे बर्फ जमी जैसी लगती
अंग अंग को बर्फ जकड़े है बैठी

कैसे यह दिन पार हो पाएंगे
क्या यूँ ही सुकड़े बैठे ही बीत जायेंगे

तू कुछ तो रहम दिखा मुझपर
हटा यह सफेद बर्फ की चादर

मत ढा इतने सितम
कब तक सहेंगे ये ठिठुरन

नाम -संगीता मिश्रा (बोलती लेखनी)
पता -गाजियाबाद( उत्तर प्रदेश)

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

आदरणीया यदि यह रचना प्रतियोगिता हेतु है तो रचना एडिट कर इसे प्रतियोगिता में ऐड किजियेगा। यह रचना फिलहाल नॉर्मल पोस्ट हो गयी है धन्यवाद 🙏🏻

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