कवितादोहा
जनवरी महीने के दोहै(शीत के दोहे)
सारा आँगन खिल उठा,बदला ऋतु ने रूप,
लगती है मनभावनी, जाड़े की यह धूप।
कुहरा-सा जीवन हुआ, किन्तु धूप-सी आस
लगती प्रिय-सी गुनगुनी,नित्य बुझाती प्यास
तन-मन चंगा हो गया, किया दवा का काम
शीत सुबह की मधुबनी,और सुनहरी शाम
अलसाई-सी धूप मैं,तुम फागुन की शाम
दे जाते हो चैन-सुख, मुझे सजन बेदाम
सबको ही पावन लगे, कभी न बदले रूप
जाति-धर्म में भेद कब,करती स्नेहिल धूप
प्रियंका प्रिया मिश्रा