कविताअन्य
रो रही हूं , मैं
खुद की जिंदगी पर
दर्द सह रही हूं ,खुद की जिंदगी का
फाड़ डाला मेरा वस्त्र
उन दरिंदो ने
अपने शौक को पूरा करने के लिए
मां ने पाला था ,बड़े प्यार से
पापा ने किया था,सारी इच्छाओं को पूरा
डर सा लग रहा है ,गिरकर
उठने में
फिर भी मैं उठुगी
और दरिदों को सजा दूंगी
हर बेटी को सीख दूंगी
ना तुझे डरना है ,किसी से
मुझे इंसाफ मिलेगा
और तुझे भी अपने हक के लिए लड़ना होगा।
धन्यवाद्🙏काजल साह - स्वरचित