कवितालयबद्ध कविता
गर्दन कटे या बहे लहू
इस बात का गम नहीं,
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झुका सके हमें कोई
इतना किसी में दम नहीं,
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मिट्टी में सोना उगाते हैं
ये हक़ीकत है, भ्रम नहीं
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ये हक़ की लड़ाई है
कोई मैदान-ए-जंग नहीं,
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हम अन्नदाता किसान हैं
किसी फ़ौलाद से कम नहीं।
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कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"