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#इकरार
शीर्षक : अपने अपने दायरे
रजनी बहुत दिनों से देख रही है कि रंगोली का मूड आजकल उखड़ा सा रहता है । आज भी रंगोली ऑफ़िस से आकर अपने कमरे में यूँ ही मुँह ढाँपे पड़ी है ।रजनी कॉफ़ी के मग लेकर रंगोली के कमरे में गई और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा “क्या बात है बेटा ? ऑफ़िस में कोई परेशानी है क्या ? अनुराग से तो नहीं फिर से झगड़ बैठीं तुम ?”
“अनुराग का नाम मत लो मम्मा “ रंगोली बिफर पड़ी । अनुराग , रंगोली का बचपन का साथी है और दोनों ने एक ही कॉलेज से इंजीनियरिंग की है । अब दोनों यहीं एक ही शहर में अलग अलग कम्पनियों में काम करते हैं ।
“ अच्छा तो बता फिर किसका नाम लूँ “ कह कर रजनी हँस पड़ी और अनुराग को घर पर बुलाने के लिये फ़ोन कर दिया । अनुराग के माता पिता दूसरे शहर में रहते हैं तो रजनी अक्सर उसे रात के खाने पर बुला लिया करती है ।
थोड़ी ही देर में अनुराग आ गया, परन्तु हर समय चहकने वाला अनुराग आज शांत था । खाने के बाद अनुराग ने रंगोली से बात शुरू की “ देखो रंगोली , मैं तुम्हारा दोस्त हूँ , पर तुम मेरे लिये एक दोस्त से कहीं बढ़ कर हो , मैं तुम्हें प्यार करता हूँ , और अपनी आगे की ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ....पर शायद तुम मुझे नहीं चाहतीं....इसीलिये मेरे इतनी बार पूछने के बाद भी तुमने कभी उत्तर नहीं दिया...मैं अब दोस्ती का अभिनय करते करते थक चुका हूँ “
और फिर रजनी की ओर मुख़ातिब होकर बोला “अांटी , आज से मैं आपके घर नहीं आया करूँगा....हाँ रंगोली को जब भी मेरी ज़रूरत होगी मैं हाज़िर हो जाऊँगा “ इतना कह कर अनुराग वहाँ से चला गया । रंगोली भी अपने आँसुओं को रोकती हुई अपने कमरे में चली गई ।
किचेन समेटने के बाद रजनी रंगोली के कमरे में गई तो वह फूट फूट कर रो रही थी । रजनी ने उसे प्यार से सहलाया और कहा “ क्यों रो रही है मेरी बिटिया ? तुझे अनुराग पसंद नहीं तो कोई बात नहीं....तुझे जो भी पसंद होगा उसी से तेरी शादी करूँगी “
रंगोली ने अपने आँसू पोंछे और बोली “ मुझे अनुराग पसंद है मम्मा....पर मुझे अनुराग से तो क्या किसी से शादी नहीं करनी “
“ अरे ऐसा क्यों ? “ रजनी ने आश्चर्य से पूछा ।
“ सारे पुरुष एक से होते हैं....अनुराग भी मुझे वैसे ही छोड़ कर चला जायेगा जैसे सालों पहले पापा आपको छोड़ कर चले गये थे और फिर कभी मुझसे मिलने भी नहीं आये “ रंगोली सुबकते हुए बोली ।
“ ये कैसी बात है बेटा....मैं और तेरे पापा के बीच तलाक़ हुआ क्योंकि हम दोनों बिलकुल अलग तरह के इंसान थे....मैं स्वच्छंद विचारों वाली चहकती सी लड़की थी और वे धीर गंभीर और पाबंदी पसंद....हमारे विचार, हमारी रुचियाँ सब अलग थे....ऐसा नहीं था कि हम दोनों ने सामंजस्य बैठाने का प्रयास नहीं किया परन्तु हम सफल नहीं हो पाए....हम दोनों ही अपने अपने दायरे से बाहर नहीं निकल पाए....घुट घुट कर एक छत के नीचे रहने से तो बेहतर था कि हम आपसी सहमति से अलग हो जाएँ....और हमने वही किया...आज वे अपनी ज़िन्दगी में ख़ुश हैं और मैं अपनी......न उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर देखने की ज़रूरत समझी और न मैंने....फिर तुम और अनुराग तो एक दूसरे से प्रेम करते हो....बचपन से एक दूसरे को जानते हो....तुम अपने प्यार पर भरोसा करो और इस रिश्ते में आगे बढ़ो “
अपनी माँ की बातें सुन कर रंगोली के मन से शंका के बादल छँट गये । उसने तुरंत अनुराग को फ़ोन लगाया । रजनी रंगोली के कमरे से बाहर आ गई थी पर उसे रंगोली की चहकती हुई आवाज़ सुनाई पड़ रही थी
“ क्या डफ़र , चल न वीकेंड पर कहीँ आस पास घूम आते हैं....और सुन...तू मुझे शॉपिंग पर कब ले जा रहा है....अरे....मेरे नाप की अँगूठी नहीं ख़रीदनी है तुझे ? बिना अँगूठी के ही प्रपोज़ करेगा क्या ? “
अंतत: रंगोली ने इक़रार कर ही लिया था और उसकी खिलखिलाहट रजनी के मन में अनूठा उल्लास भर रही थी ।
अंशु श्री सक्सेना
मौलिक/ स्वरचित