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पतंग - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

पतंग

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पतंग

हवा में डोलती कहां से आई री पतंग?
मैं आई चीन देश से यह मेरा इतिहास
करो मेरा विश्वास तैईस सौ साल पुराना है
ईसा पूर्व से उद्भव मेरा सबने माना है
अस्तित्व हुआ कैसे यह भेद अजाना है
रेशम का कपड़ा,रेशम का धागा ले बांस में बांधा
अनियंत्रित हुई इधर-उधर तो मजबूत डोर से साधा
पंखों पर विजय-वर्चस्व की आशाओं का बोझ
अंधविश्वास और अनूठे प्रयोग,शगुन की वाहक कहलाई
रोमांचक खेल, आकांक्षाएं और मान्यताएं
प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने की साथी
खाली समय का साथ, बच्चों से बूढ़ों को भाती
वैज्ञानिक और सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति
विमान आविष्कार की प्रेरणा शक्ति
मनोरंजन करती,बुलंदियों के आसमां में उड़ती
अन्नत समस्याओं से लड़ती, गिरती
जो विश्वास व हौसलों की डोर टूटती
न चाहती दुर्घटनाएं मुझ कटी पतंग की खातिर
तेज तार उड़ते पक्षी को बन जाती है खतरा
मांझा कांच मिला अनजाने बनता जंजाल
अब पतंगोत्सवों में ही आता मेरा ख्याल
खुले स्थानों की कमी और समयाभाव
मोबाइल गर हाथ हो खलता कहां अभाव!
उत्तरायण का शुभ दिन याद दिलाता मेरी
खिली धूप में विटामिन डी की कमी हो जाए पूरी।

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