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दो अजनबी - Nutan Garg (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

दो अजनबी

  • 280
  • 6 Min Read

#इकरार

दो अजनबी

एक अजब सी कहानी सुनों,
सुनों मेरी जुबानी सुनो,
आसमान में अनेक तारों के मध्य में,
एक अनोखा तारा था वो,
और एक अनोखा तारा थी वो...

क‌ई साल पहले की बात थी वो,
दोनों बंधे शादी के बंधन में थे,
फिर शुरू हुई एक नई कहानी थी,
दोनों का मन हुआ रुमानी सा था,
कभी इनकार तो कभी इकरार में,
बीतने लगा समय दोनों का था,
घू्मने लगा था समय का पहिया तेजी से,
रहने लगे थे जुदा-जुदा से दोनों अब,
जिम्मेदारियों ने कस दी थी लगाम दोनों पर,
दोनों के पास न रहा था अपना सा पल अब,
दिन-रात बस पकड़े रफ्तार का ही पल,
एक दिन फिर से हुआ सब अपना सा,
फिर लौट आए थे वही पुराने से पल,
वो जिंदगी के कुछ खोए, गुम हुए से पल,
कभी इनकार तो कभी इकरार के पल,
जीवन निरंतर मांगे कुछ अलग से पल,
उनकी खुशी में समाहित हो चला था मौन,
जीवन में उदासी का हो गया था अंत,
आसमान भी था खड़ा हाथ फैलाए अब,
दोनों आखिरी पड़ाव में पंहुंच ग‌ए थे अब,
कभी इनकार तो कभी इकरार में,
पंहुंच ग‌ए थे आसमान की बांहों में अब,
जीवन का चक्र हो गया था समाप्त अब,
न कभी आएगा दोनों के मध्य में ,
इकरार और इनकार का पल अब।

दो अजनबियों की कहानी का हो गया था अंत,
तो बताओ कैसी लगी कहानी हमारी जुबानी...

मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)

#इकरार

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 2 years ago

वाह वाह

Vinay Kumar Gautam

Vinay Kumar Gautam 3 years ago

बढ़िया.. 👌

Nutan Garg3 years ago

हार्दिक आभार जी 🙏

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