कविताअतुकांत कविता
वेदना...
मानवीय संवेदनाओं को
अपनी अतृप्त लेखनी से
व्यक्त कर समेटता हूं
ढेर सारी शाबाशी
खुश होता हूं
पाकर प्रशस्ति-पत्र
गड़गड़ाहट सुन तालियों की
प्रफुल्लित होता हूं
लेकिन
कोई नहीं सोचता
सोता था
रचना पात्र जिस जगह पर
उसी जगह पर क्यों सोता है......
अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’