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कलुआ.... - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कलुआ....

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कलुआ....

कल कलुआ पर लिखी कविता
आज छपी थी जिस अखबार में
दिनभर की थकान मिटाने के लिए
दो पैक पीने के बाद
खाने वाले चने बंधे थे
कलुआ के हाथ में उसी अखबार में
क्षितिज के पार तक
कोई संबंध नहीं था कलुआ का
उस कविता से
कल कलुआ पर नहीं लिखूंगा
फिर कोई कविता
उसके लिए संघर्ष करूंगा.....

अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’

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