कहानीलघुकथा
विभा दुल्हन के जोड़े में बहुत सुंदर लग रही थी। बस बारात आने में कुछ ही पलों की देरी थी। वह मन ही मन सोचने लगी कि कुछ घंटों बाद वो विभोर की जीवनसंगिनी बन जायेगी और अभिषेक से दूर हो जायेगी। दरअसल वह अपनी सोसाइटी में रहने वाले अभिषेक से मन ही मन बहुत प्यार करती थी और उसके संग ही अपने भविष्य के सपने भी बुनती थी, पर उसकी तरफ से कभी प्यार का इज़हार नहीं हुआ और वह लज्जावश अपने दिल की बात कभी उससे कह ना सकी। अचानक ही" बारात आ गई, बारात आ गई" का शोर मचा तो उसका ध्यान भंग हुआ। विभा को सहेलियों द्वारा स्टेज पर ले जाया गया तो विभोर तो उसे एकटक देखता ही रह गया ।बड़ी धूमधाम से जयमाल हुई। खूब हंसी-मजाक चल रहा था।इसी बीच विभा ने देखा अभिषेक स्टेज की तरफ ही चला आ रहा है।उसे देखते ही उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। अभिषेक ने दोनों को बधाई दी और विभा के हाथ में शगुन का लिफाफा और उससे बोला इसे अपने पास ही रखना, ऐसा कहकर वह वापस चला गया।विभा उसे अपलक देखती रह गई और लिफाफे को उसने झट से अपने पर्स में रख लिया। उसके मन में उस लिफाफे को खोलने की उत्सुकता जाग उठी पर वो इतने लोगों से घिरी हुई थी कि उसे देख नहीं पाई। सब उसके साथ फोटो खिंचवाने में लगे थे। उसके बाद खाना एवं फेरों का समय हो गया। फेरों के बाद वो वाॅशरुम जाने के बहाने से उठी और वहां जाकर जल्दी से अभिषेक के द्वारा दिए गए शगुन के लिफाफे को निकाल कर देखने लगी। उसमें और तो कुछ नहीं था एक पत्र था जिसे खोलकर वह पढ़ने लगी जिसमें लिखा था
मेरे दिल की रानी,
मैं तुम्हें दिल की गहराईयों से चाहता हूं ।तुम्हें देखे बिना मुझे चैन भी नहीं आता है पर अपने संकोची स्वभाव के कारण तुमसे कभी अपने मन की बात कह ही नहीं पाया। कभी तुमने भी यह संकेत नहीं दिया कि तुम मुझे प्यार करती हो वरना शायद हिम्मत भी कर पाता, पर अब तुम किसी और की हो जाओगी यह मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा ।तुम देखना इधर तुम्हारी घर से विदाई होगी और मेरी दुनिया से ।बस तुम जहां रहो ,खुश रहो ,यही मेरी दुआ है।
तुम्हारा अभिषेक
पत्र पढ़कर विभा के पैरों से ज़मीन खिसक गई।उसने जल्दी से वह पत्र पर्स में रखा और वाॅशरूम से बाहर आ गई। बाहर आकर उसे अपनी बहन से पता चला कि वाकई में अभिषेक ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी है। यह सुनकर वह बहन से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। सब यही सोच रहे थे कि यह विदाई के गम में आंसू बह रहे हैं पर असलियत तो कुछ और ही थी। विभा सोचने लगी काश अभिषेक पहले ही प्यार का इज़हार कर देता तो आज हम दोनों ही खुश होते। ना उसे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता ना मैं जीते जी ही मरती, या फिर वह इकरार ही ना करता। कम से कम एक भ्रम ही बना रहता।अब तो मैं भी अपराधबोध के तले जी नहीं पाऊंगी। रोते-रोते उसका बुरा हाल हो गया था।सब उसे समझाने में लगे थे कि लड़की को एक दिन विदा होना ही होता है,यही समाज की रीति है।विभा लोगों को कैसे बताती कि वो क्यों रो रही है।तभी बैंड वालों ने विदाई गीत" चल री सजनी अब क्या सोचे......."बजाना शुरू कर दिया और विभा सुबकते सुबकते विभोर के साथ भारी मन से विदा हो गई।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
दिल को छूती रचना
Thanks a lot Ankita ji