कविताअतुकांत कविता
तिल का महत्व
माह पूस ठिठुरन है लाया
लड्डू का मौसम है आया
गुनगुनाते पावन भाव से
लड्डू का श्रीगणेश करो
अच्छे मोती से साफ़ धुले
किलो भर लो देसी तिल
लोहा कड़ैया चूल्हे रखो
तड़का कर ठंडी हवा दो
हल्के हाथ से खलबत्ते में
कूटो धीरे कि महक उठे
गुड़ देसी दानेदार मन से
चूरा कर ढांकके रख लो
किसा खोपरा, किशमिश
कश्मीरी केसर चुटकी ले
पिश्ता काजू बादाम थोड़े
कतरे कतरे हो तो अच्छा
बिन बीज के छुआरे भी
हाँ खोया भी मनमर्ज़ी से
बैठ पटे पे,फ़िर होले होले
सब सामग्री खूब मिलालें
अब गोल लड्डू बना लो
तुलसी रख भोग लगाओ
दीनों हीनों को पहले देदो
फ़िर साथ बैठ सब खाओ
बड़े कामका है नन्हा तिल
सेहत कभी ना खोए दिल
बड़ी उम्र के ये दर्द भगाए
तेज़ दिमाग़ बच्चे भी पाए
सस्ता सुंदर पौष्टिक है ये
जाड़ा बने जायके वाला
सब मिल तिल गुड़ खाए
मीठा बोले और मीठे बने
उत्तरायण उत्सव मनालें
और सेहत अपनी बना लें
सरला मेहता