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बाक़ी हो आज भी मुझमें - Maniben Dwivedi (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बाक़ी हो आज भी मुझमें

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बाक़ी हो आज भी तुम मुझमें
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कब पूरी होती हैं दिल की ख्वाहिशें ??
बस हम चलते रहते हैं,
वीरान राहों के मुसाफिर की तरह
अधूरी तमन्नाओं का बोझ लिए
हम गुज़ार देते है अपनी उम्र।
दफ़न कर लेते हैं उन तमाम सपनो को
जिन्हे हम कभी पूरा नहीं कर पाते।
ख़ामोशी के बोझ तले
सिसकते अरमानों को सब्र का घूंट
पिलाते रहते हैं,
पर उफ्फ नहीं करते।
उलझ कर रह जाती है जिंदगी एक तमन्ना में?
क्यूं दरकार कर बैठी तुम्हे पाने के लिए?
एक ख्वाहिश कायनात पाने की... ????
तुम्हारे एहसास ही काफी थे मेरे जीने के लिए।
क़दम चल तो पड़ा था अनजानी डगर पर।
लिए।उम्मीद का दीया चाहतों के सफ़र पर।
ना मंज़िल का कोई पता था ना ख़ुद की कोई खबर।
हसरतें मचलती रही अश्क ढलते रहे।
क़दम दर क़दम हम भी तो बढ़ते रहे
नहीं रहा तुमसे कोई शिकवा ना ही कोई मलाल रहा।
मुकद्दर में नहीं था मंज़िल तो नहीं मिला।
भटके थे दर ब दर अपने दिल को दुखाते रहे।
मचलते अरमानों को वक्त बे वक्त दफनाते रहे।
तेरी जुस्तजू में तमाम उम्र खुद को तबाह किए।
अपनी बेबसी में खुद को जार जार किए।
समझाए अपने मासूम दिल को कि...
कब पूरी होती है किसी की तमन्ना???
ताउम्र फकत मलाल ही तो रह जाता है।
मलाल ही तो रह जाता है।।

** मणि बेन द्विवेदी

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