कहानीप्रेरणादायक
विषय,,,बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ
नाटक
अभय दान
पात्र,,,,,
1,,,,डॉक्टर अभय गुप्ता
2,,,,देवांशी---माँ बनने
वाली है,बिन ब्याही
३,,,,शम्भूनाथ--देवांशी
के पिता व वकील
4,,,, शुभांगी---देवांशी
की माँ
5,,,,मदन---शम्भूनाथ का
नौकर
6,,,,धनिया--मदन की
बीबी
7,,,,डॉ अभया,देवांशी
की बेटी।
दृश्य---(1)
शम्भूनाथ--सुनो शुभांगी, अब क्या करें ? हमें देवी माँ ने देवांशी सा उपहार दिया। उस लड़के ने धोखा दिया। कोर्टबाजी से बदनामी होगी।
शुभांगी--जी, एक काम कर सकते हैं। कुछ महीनों के लिए मदन के यहाँ छोड़ देते हैं। धनिया अच्छे से ध्यान रखेगी। फ़िर सोचेंगे बच्चे के बारे में।
दृश्य (2)
(मदन देवांशी को अपने साधारण से घर में लाकर खटिया पर धीरे से लिटाता है।)
धनिया-- (बाहर आकर)
अरे ये कहाँ की मुसीबत ले आए। पता नहीं किसका लिए फ़िर रही है।
मदन-- मैंने बताया तो था,साब की बेटी है। मंगेतर ने धोखा देकर सगाई तोड़ दी।
देवांशी-- धनिया काकी, मुझे रख लो यहाँ। मैं नहीं चाहती पापा की बदनामी हो।
धनिया--अच्छा तो आप वकील सा की बेटी हो। हाँ साहब मेम सा, देवी जी को बहुत मानते हैं। रतजगे में मुझे भी बुलाते हैं। ठीक है बेटा, कुछ खा लो।
दृश्य (3)
(चार माह बाद मदन, डॉ गुप्ता को साथ लाता है। देवांशी दर्द से तडफ़ रही है। बेटी जन्म के बाद रोती नहीं है)
डॉ गुप्ता-- घबराओ नहीं। बेटी ठीक हो जाएगी।
देवांशी--प्लीज़ डॉ, उसे मत बचाइए। मैं नहीं चाहती कि वह भी मेरी तरह भोगे।
डॉ गुप्ता--(अपना कार्ड देते हुए) अब यह ठीक है। इसकी परवरिश ऐसे करना कि यह समाज में उदाहरण बन सके। एक दिन तुम्हारा नाम रोशन करेगी। निराशा छोड़ो व इसे अपने जीने का मक़सद बनाओ।
दृश्य (4)
(बाइस साल बाद। डॉ अभय गुप्ता का सम्मान हो रहा है। वे अभी तक कई लड़कियों की अपने अस्पताल में निःशुल्क प्रसूति करवा चुके हैं।)
डॉ गुप्ता--दोस्तों, आपके इस प्यार और आदर से में अभिभूत हूँ। आप सब आज डॉ बन जाओगे। याद रखना, बेटियों को बचाना है और पढ़ाना भी है।
डॉ अभया--डॉ गुप्ता अपने यहाँ जन्मी बेटियों की माओं को नक़द राशि भी देते हैं। बाद में भी उनका इलाज़ मुफ़्त ही करते हैं। सर , प्लीज़ आप मेरे घर चलिए। मेरी माँ आपसे मिलना चाहती हैं।
डॉ गुप्ता-- क्यों अभया ?
डॉ अभया-- सर, मेरी माँ से मिलकर आप बहुत खुश होंगे। वो आपको हमेशा याद करती है।
दृश्य (5)
(डॉ अभया का घर। अभया के साथ डॉ अभय गुप्ता को आते देख देवांशी दौड़कर उनके पैरों को छूती है।
डॉ साहब पहचानने की कोशिश करते हैं)
डॉ गुप्ता-- अरे आप ???
वही हैं न जिनको एक बेटी हुई थी...।
देवांशी-- जी डॉ साहब , ये वही बेटी है। मैं उस एहसान को कैसे भुला दूँ। आप ही ने इसे बचाने व पढ़ाने की प्रेरणा दी थी। इसीलिए मैंने इसका नाम भी आपके नाम पर अभया रखा।
डॉ गुप्ता-- अरे वाह ! आज तो बेटी अभया के हाथ की चाय अवश्य पीना है।
सरला मेहता