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भय - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

भय

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क्या आबरू ऐसे ही लूटी जाएगी
हुक्मरानों को शर्म न आएगी।

थाना, अदालत, बयान, सबूत, गवाह
जिंदगी चक्कर लगाने में गुजर जाएगी।

सजा तो सिर्फ सुनने-सुनाने के लिए होगी
फांसी में जाति-धर्म, राजनीति आड़े आएगी।

भय बिन होई न प्रीति का मर्म समझो
अपराध की दर में कमी जरूर आएगी।

अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’

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