कविताअन्य
क्या आबरू ऐसे ही लूटी जाएगी
हुक्मरानों को शर्म न आएगी।
थाना, अदालत, बयान, सबूत, गवाह
जिंदगी चक्कर लगाने में गुजर जाएगी।
सजा तो सिर्फ सुनने-सुनाने के लिए होगी
फांसी में जाति-धर्म, राजनीति आड़े आएगी।
भय बिन होई न प्रीति का मर्म समझो
अपराध की दर में कमी जरूर आएगी।
अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’