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पतंग और हम - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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पतंग और हम

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💐पतंग और हम💐

ये रंगबिरंगी, विभिन्न आकारों वाली पतंगें हमारे जीवन के कई पन्ने खोल देती हैं। इठलाती, लहराती, उलझती, उड़ती कटती...कभी ऊपर तो कभी ज़मीन पर आ गिरती। उतार चढ़ाव सहती कह जाती हैं कई कहानियाँ।
पतंगों के मानिंद हर एक की एक व्यक्तिगत पहचान होती है। विभिन्न स्वभाव, रंगरूप, आदतें हैं। लेकिन कोई न कोई ऐसी ख़ासियत अवश्य होती है जो सबका ध्यान आकर्षित करती है।
पतंगों का जीवन चक्र, नाज़ुक से पतले कागज़ से प्रारम्भ होता है। इसे मनचाहे आकारों में ढाला जा सकता है, बड़ी कारीगिरी से। संस्कारों का संस्कार कैंची की तेज़ धार से किया जाता है। फ़िर कसा जाता है बांस की तीलियों से, उड़ने के लिए तमाम झंझावातों को सहते। स्नेह व ममता की लाई के बिना कसावट कहाँ से आएगी।
फ़िर आती है,नियमों , कायदे-कानूनों की बात। मांजे की पक्की डोर से बाँधा जाता है। देश में घूमों, विदेश जाओ लेकिन अपनी संस्कृति संस्कारों से बंधे रहो। जड़ से विलगता अर्थात अस्तित्व की पूर्णाहुति।
हमारे यहाँ मांजे का उचका माता पिता के हाथ में रहता है। कब ढील देना, कब कसना वे भलिभाँति जानते हैं। किसी अनुभवहीन को थमा दिया यानी बेड़ाग़र्क़। डोर से ही संतुलन बना रहता है। बिना इसके कभी भी कट कर अर्श से फ़र्श पर आ जाते हैं। हाँ नासमझी के कारण कोई और लूट भी सकता है।
उड़ते हुए यदि किसी को धोखा दिया तो अपने ही जाल में हम फस जाते हैं। तो साथियों, उड़ते रहो तथा औरों को भी उड़ने दो।
सरला मेहता

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