कविताअतुकांत कविता
*मकर संक्रांति/लोहड़ी
लोहड़ी में सूरज ढलते ही
लकड़ी,उपले,कंडे, रेवड़ी
भांगड़ा, ढोल-नगाड़ों की धूम
गली- मोहल्ले गुलज़ार हुए
जहां पहली लोहड़ी की गूंज
मक्का, गजक ,तिल, गुड़, लावा ,रेवड़ी
नववधू घर- घर जाकर मांगे लोहड़ी
लोहड़ी के गीत गूंजते
दुल्ला भट्टी लोकगीतों में सजते
बूढ़े ,बच्चे लोहड़ी की परिक्रमा करते।
शीत ऋतु की सुदीर्घ रात्रि
खुशहाली का प्रतीक
करें तिलचौली अग्नि को दान
सुख-समृद्धि का दे वरदान।
कल की तैयारी भी पूरी
रंगबिरंगी पतंगें आईं
मांझा भी दुरुस्त किया
जुटा ली सामग्री सारी
सूर्य देव की बाट निहारी।