कहानीलघुकथा
पल्लवी यही तो नाम था उसका पर संचित तो उसे पल्लो के नाम से ही पुकारता था । वह चिढ़ती थी गुस्सा होती थी पर संचित के मनुहार से मान भी जाती थी । दोनों बचपन के दोस्त थे ,पड़ोसी भी थे । धीरे धीरे बचपन छूटा युवावस्था में प्रवेश कर गये पर दोस्ती कब प्यार में बदल गयी पता ना चला ।
पल्लवी सुन्दर भी इतनी कि चांद भी फीका हो जाये। धीरे धीरे दोनों के प्यार की बाते सबको पता होने लगी । दोनों परिवार वाले एक दूसरे परिचित थे फिर भी इस शादी को तैयार नहीं थे । दोनों की जाति अलग थी संचित निम्न जाति से था और पल्लवी उच्च कुल की । पल्लवी के भाई लोग बहुत दंवग थे । उन्होंने ने पूरी तरह पल्लवी पर बन्दिश लगा दी और संचित को डरा धमका दिया कि वह अपने परिवार के साथ इस शहर को छोड़ कर चला जाये ।
पल्लवी का तो रो रो कर बुरा हाल था । उधर संचित भी परेशान था । कैसे भी दोनों आपस में मिल भी नहीं पा रहे थे । सीमा जो दोनों के साथ पढ़ती थी उसको जब पता लगा तो वह इन दोनों को मिलाने का माध्यम बनी और किसी प्रकार दोनों की मुलाकात करा दी । पल्लवी ने जिद पकड़ ली कि वह अब घर नहीं जायेगी । संचित के बहुत समझाने पर और वायदा करने पर कि पहले वह अपने परिवार को कही सुरक्षित दूसरे शहर भेज दे उसके बाद उसे ले जाकर वह शादी कर लेगा । संचित के दो दोस्त दिल से संचित के साथ थे । उन्होंने उसकी मदद की और पल्लवी को किसी प्रकार दूसरे शहर ले जाकर शादी करवा दी । समय बीत रहा था । संचित और पल्लवी को लगा कि शायद अब उसके घर वाले शान्त हो गये होगे । समय के साथ उसने एक बच्ची को जन्म दिया संचित और उसके मां बाप उस परी को पाकर बहुत खुश थे पर भाईयों की दंबगता और पैसे का गुरुर पल्लवी और संचित द्वारा उठाये कदम को नहीं भूले वह उसको तलाशते रहे । एक दिन उनके किसी दोस्त ने बता दिया वह पल्लवी के घर आगये और बड़े प्यार से पल्लवी ,संचित और नन्ही परी को अपने घर ले गये । पल्लवी और संचित को लगा अब सब सही हो गया पर वहाँ तो कुछ और ही होना था जिसकी दोनों ने कल्पना भी ना की थी । उसके भाईयों और उनके साथियों ने संचित को गोली मार दी व नन्हीं परी को हाथ से छीन कर दूर उछाल दिया । पल्लवी चीखती रही और बेहोश होगयी , जब उसे होश आया तो सब खत्म था भाई उसे घर ले आये । पल्लवी मानसिक रुप से विक्षिप्त हो गयी । वह अपनी बच्ची और संचित का नाम लेकर चिल्लाती थी , वह कहती मेरी परी को ठंड लगेगी और उस पर कपड़े नहीं है। तुम नहीं लाओगे और अपने कपड़े कैंची से काट लेती थी कि मै अपनी परी के कपड़े बनाऊगी फिर सबको दिखाती कि ये है मेरी परी का फ्राक । मेरा संचित आयेगा और मै उसके साथ भाग जाऊंगी ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल