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मैं अक्सर खुदबखुद..... - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मैं अक्सर खुदबखुद.....

  • 193
  • 10 Min Read

मैं अक्सर खुदबखुद
जिंदगी की भँवर में
फँस सा जाता हूँ
उसकी हर एक
पेचीदगी की दलदल में
बस धँस सा जाता हूँ

अतिमहत्वाकांक्षा के मरुस्थल में,
सुख की मृगतृष्णा के पीछे-पीछे
सिर्फ दौड़ता-भागता हूँ
बस भागता ही रहता हूँ,
सिर्फ हाँफता ही रहता हूँ

रेस सा बना लिया है
जिंदगी के इस सफर को,
रेसकोर्स सा तना लिया है
इसकी हर एक डगर को

इस सफर के हाथों बस
"सफर " ही करता रहता हूँ
जिंदगी को बेवफा सी
डगर सा करता रहता हूँ

जीता नहीं इसको कभी मैं,
पीता नहीं एक बूँद इसको,
हाँ, नहीं सका मैं ढूँढ इसको

यह खोती रहती है पल-पल,
बंद मुठ्ठी से रेत सी फिसल,
कभी नहीं, हाँ, कभी नहीं,
एक बच्चे सा मचल,
बन उसके मासूम
सपनों की तरह
अल्हड़, चंचल, और तरल

कभी नहीं, हाँ, कभी नहीं,
मैं क्यूँ, कभी कहीं नहीं
बनकर उसकी हर सोच सा,
एक सीधा और सरल,
उसकी हर शरारत सा,
शैतानी की हर महारथ सा,
हर एक लमहे की
एक अद्भुत सीपी में
स्वातिबिंदु की तरह ढल
मोती सा बन रहता हूँ

मैं तो अक्सर आस-पास
बिखरी खुशियों से
आँख मूँद-मूँदकर,
पास नहीं जो,
बार-बार
बस उसे ही,
सिर्फ उसे ही
ढूँढ-ढूँढकर,
जिंदगी को
बस गुजर
और बसर ही
करता रहता हूँ

आज से अनजान बनकर,
बस भूत के हर भूत को ही
दूर से, बस दूर से ही
ललचाते, भरमाते रहते,
उस भविष्य के दूत को ही
हमसफर करता रहता हूँ


हाँ, कभी तो इसके कुछ
खुशनुमा से लमहों को,
जीने की इन
बेशकीमती वजहों को,
एक हसीं अहसास बना,
इनकी खूशबू से
हर पडा़व को खास बना

इनके साथ हमसफर बन,
एक अजीज हमराज बन,
भूलकर दोनों कलों को,
आज और बस आज बन

हर खामोशी की मदहोशी को,
हर लमहे की जिंदादिली में
सिमटी गर्मजोशी को,
उसकी हर एक
चुहल और सरगोशी को,
अपना कह लूँ

जमी हुई मनहूसियत सी,
ठहरे-ठहरे से पलों की
हर बर्फ को पिघलाकर,
जिंदगी के आईने में
खुद को खुद का
चेहरा दिखलाकर,
इसकी हर मुस्कान को
अपना कह लूँ
मैं भी उसके साथ बह लूँ,
कुछ पल मैं अपने साथ रह लूँ

कुछ सुन लूँ उसको,
और कुछ अपनी कह लूँ,
और हाथों में लेकर हाथ,
कुछ पग, जिंदगी के साथ,
और ओस जैसी पाक,
उसके सच की
बंदगी के साथ टहलूँ
जी लूँ इसका
हर एक पहलू

छोटी-छोटी खुशियों को
कुदरत का तोहफा समझकर,
खुश रहने का मौका समझकर,
अहसासों की फुलवारी में
लमहों की खुशगवारी में
महकती सी,
चहकती सी,
बहकती सी
पुरवाई सा बनकर
मैं पल-पल बह लूँ

द्वारा : सुधीर अधीर

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