कहानीलघुकथा
पैसे पेड़ पर नहीं उगते ---
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आज शर्मा जी बहुत खुश थे । वह जल्दी घर पहुँचना चाहते थे । जिससे घर जाकर खुश खबरी सुना सकें । उनकी अकेली लाडली बेटी शुचि का सम्बन्ध इतने बड़े घर में होने जा रहा था सचिन इंजीनियर था और अगले महीने वह विदेश जा रहा था । सचिन के मांबाप उसकी शादी करने की जल्दी में थे ।
घर पहुँच कर अपनी पत्नी दोनों बेटे और बहुओं को आवाज देकर बुला लिया । सब आगये उन्होंने सबसे कहा कि शुचि सचिन को पसंद है। दोनों बेटो ने पूछा पापा उनकी मांग किया है। शर्मा जी ने कहा बेटा मांग तो है कुछ मैने इन्तजाम किया हुआ है क्योंकि तुम लोगो को सब पता है । ये घर बनवाने और तुम्हारी पढाई में बहुत खर्चा हो चुका है इसलिये कुछ इन्तजाम तुम दोनों
कर दो ।
इतना कह कर शर्मा जी अपने कमरे में चले गये ।रात को वह उठे तो देखा बेटों के कमरे की लाइट जली हुई थी । वहां से बातों की धीमी धीमी आबाज आरही थी । वह उस तरफ चले गये जब उनके कानों में बेटों और बहुओं की आवाज़ें आई तो वह अचम्भित रह गये । दोनों बहुयें बेटों से कह रही थी आप दोनों मना कर दो की पैसो का इन्जाम नहीं होगा यदि आप के ऊपर खर्च किया तो उनका फर्ज था । आपके भी बच्चे हैं आगे दिन पर दिन खर्च बढ़ रहे हैं और क्या पैसा पेढ पर उगता है जो कि सीजन आने पर आजायेगा । शर्मा जी इससे आगे नहीं सुन पाये । हां उन्होंने निर्णय कर लिया कि घर उनका है इस पर केवल मेरी बेटी का अधिकार होगा , और वह आराम से सो गये सोच कर कल पैसों का इन्जाम करेगे ।
स्व रचित
डा.मधु आंधीवाल