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अलविदा 2020 - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

अलविदा 2020

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#2020
अलविदा 2020
जनवरी 2020 का आगमन नये वर्ष का सुखद एहसास । सब खुश थे । 2020 सुन कर भी अच्छा लग रहा था पर किसी को क्या पता था कि सबकी जिन्दगी ही 2020 हो जायेगी । फरवरी आते आते कुछ खबरे आने लगी कि कोई बीमारी चीन में फैल रही है। हम तो बेफिक्र थे सोचा हमारे यहाँ क्या मतलब इसका और होली की तैयारी शुरू करने लगे क्योंकि 9-10 मार्च की होली थी । अचानक प्रधानमंत्री जी ने होली ना खेलने का फैसला किया । होली का त्योहार भी पहले की अपेक्षा हल्का रहा । एक हफ्ता ही बीता था कि 22 मार्च का जनता कर्फ्यू का हल्ला मचने लगा । 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लग गया । दिन शान्तिपूर्ण बीत गया । 24 मार्च से लग गया लाक डाउन अब कुछ कुछ भयानकता महसूस हुई । जिन्दगी जैसे थम गयी । चारों और सन्नाटा । पहले लग रहा था कुछ दिन में सब सही हो जायेगा पर स्थिती बिगड़ रही थी । घर में मन नहीं लग रहा था । बच्चे सब बाहर । जब भी TV खोलो केवल कोरोना राक्षस ही सुनाई दे । मजदूरों का शहरों कि छोड़ कर अपने घरों को वापिस जाना उनकी भीड़ देखकर मन व्याकुल भूखे प्यासे बच्चों को कन्धो पर बिठाकर महिला हैं चली जा रही थी । मरने वालों की संख्या के आंकड़े जब सुनते दिल दहलता । सब जगह हाहाकार । लोगो की नौकरी चली गयी । लगने लगा अब कल सब खत्म हो जायेगा । मै भी धीरे धीरे अवसाद में आने लगी । रात को नींद नहीं आती थी । हर समय फाटक से भीतर फाटक खोलने पर लगता कोरोना बाहर खड़ा है। कोरोना साया सोते जागते साथ रहने लगा सब सीमा सील हो गयी । एक दूसरे को केवल फोन से राजी खुशी पूंछ रहे थे । दिन पर दिन गुजर रहे थे अब बैक्सीन आने से थोड़ी हिम्मत बंधी है। अब बस एक दिन और निकल जाये ।
ये साल इतिहास में सबसे मुश्किल और उथल पुथल भरे साल के रूप में दर्ज होगा लेकिन दुनिया को इसने कुछ सिखाया भी है। सबने जिन्दगी को लेकर अच्छी आदतें भी सीखी हैं। पर्यावरण को शुद्ध रखने की नसीहत , स्वास्थ्य के लिये योगा जड़ी बूटियों का प्रयोग ,एक दूसरे की सहायता ,परिवार का महत्व,अपनी संस्कृति में हाथ जोड़कर नमस्ते करना , बाहर से आकर हाथ पैर धोना और बहुत सी बाते जो हम भूल गये थे सब अपनाने लगे हैं। हम से अधिक बच्चे अधिक जागरूक हैं।
ईश्वर से प्रार्थना है कि 2021 सबकी जिन्दगी में इन्द्र धनुषी रंग भरे । बीते दुखद समय को भुला कर नये साल के आगमन का स्वागत करें ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल

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दादी की परी
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