कविताअतुकांत कविता
आहट सजन की
सजन के आने की आहट
ये बहारें दे रही हैं
हर सांस में अहसास तेरा
महका रही हैं हवाएं
ये धड़कने मेरी फ़िजा में
दे रही संदेस पी का
दर्पण भी मुझ पे हंस रहा है
बावरी सी हो गई मैं
कैसे सजू?कितना संवारु?
टीका बिंदिया बुँदे पहनू
गजरा कहीं ना भूल जाऊँ
सितारों से मांग भर लूँ
कंगना पायल और झुमका
करधूनी बाजूबंद कहाँ ?
मेहँदी महावर कब लगाऊं ?
झीनी चुनरिया ओड़ लूँ
कारे बदरा घिर घिर आए
बरखा रानी थोड़ा ठहरो
बाट जोहती दहलीज़ पर मैं
पिया का पथ यूँ ना रोको
सरला मेहता