कवितालयबद्ध कविता
शहर मेरा बनारस
बरसे जैसे सुधारस
हर तरफ ज्ञान की आभा
लिए हुए विविध यश।
शहर मेरा बनारस।
इसकी गलियां सकरी
पर खिलती हैं हंस हंस
दैदिव्य ज्ञान की कुंजी
देवताओं की है पूंजी
शहर मेरा बनारस
बरसे जैसे सुधारस।
यह अविचल यह स्थिर
धरती पर सुन्दर अविस्मृत
मंदिर का जैसे स्वर्ण कलश
शहर मेरा बनारस
बरसे जैसे सुधारस।
जीवन मृत्यु जहां साथ साथ
देती है सुन्दर आभास
यह मोक्षदायिनी अमृत कलश
शहर मेरा बनारस
बरसे जैसे सुधारस।
गंगा में जहां समाती है
और सुबह सुबह खिल जाती है
सफेद कुमुदनी जहां नहा कर सूर्य में
रक्त स्वर्ण बन जाती है
शहर मेरा बनारस
बरसे जैसे सुधारस।