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ग़ज़ल - Maniben Dwivedi (Sahitya Arpan)

कवितागजल

ग़ज़ल

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ग़ज़ल
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मुहब्बत बन गई उनकी सजा है।
मुहब्बत पर लगा पहरा कड़ा है।

मनाया किस तरह रिश्तों को हमने।
अभी रूठा है वो माना कहां है।

कहीं हम टूट कर जाएं बिखर ना।
तुम्हारा प्यार अब महंगा पड़ा है।

भुलाऊं किस तरह यादें तुम्हारी।
तेरा एहसास ही दिल की दवा है।

भूलाना अब कहां मुमकिन है तुमको।
नशा चाहत का कुछ ऐसा चढ़ा है।

कहे थे लौट कर आऊंगा एक दिन।
तेरे वादे पे दिल अब भी अडा है।

पता तेरा ही सबसे पूछता है।
तुम्हे ही हर तरफ दिल ढूंढ़ता है।

जिसे।दिल ने कहा अपना ख़ुदा है।
वो मुझसे कह चला अब अलविदा है।

जिनके इश्क़ में दिल मर मिटा है।
सनम मेरा बड़ा वो बेवफ़ा है।

गुजारी उम्र जिसकी याद में ही।
नहीं बाक़ी कोई अब सिलसिला है।

मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश

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