लेखआलेख
नववर्ष में मेरे संकल्प
संकल्पों के सन्दर्भ में कुछ पंक्तियाँ अनायास जेहन में गूँजी,"शुभ करम में न देरी करो साँसों का भरोसा नहीं,जोभी करना है अब ही करो,,,"।
संकल्प, हमारी सोच पर निर्भर हैं।जैसी सोच वैसे कर्म। और कर्मों से ही संस्कार बनते हैं। सोच से हमारे लिए सृष्टि निर्मित होती हैं।
अतःदस्तक दे रहे नववर्ष के लिए मेरे संकल्प आज के चुनौतीपूर्ण हालातों में कुछ हटकर ही होंगे।
* कोरोना के कहर में वसुधैव कुटुंब की भावना के साथ अपने परिवार के साथ औरों का भी ध्यान रखें। अपनी हैसियत माफ़िक औरों की ज़रूरते भी पूरी करूँ।
*इस परिस्थिति ने सभी को स्वावलम्बन की आदतें डाल दी हैं। बच्चे भी मदद करने लगे। इसे निरन्तर रखूँगी।
*बाहर की चाट जंक फूड से अब सदा के लिए विदाई। घर का शुद्ध सादा भोजन बेहतर।
* प्रकृति के प्रहार जारी हैं। हमने वही शाखा काट दी जिसपर हम बैठे थे। अतः पर्यावरण प्रिय बन जागरुकता फैलानी है।
मैं अपनी तरफ़ से परिवार व सभी मिलने वालों को कागज़ बिजली जल आदि प्राकृतिक तत्वों को बचाने की याद दिलाती रहूँगी। मैं अपने घर में जितनी भी हरियाली कर सकती हूँ, करूँगी। ताकि पंछियों की चहचहाट सुन सकूँ। वैसे घर में आम जामुन आदि जो भी फल आते हैं,उन्हें मैं बेटे के द्वारा उसके ऑफिस आदि में डलवा देती हूँ। अब बीजों को मिट्टी में छुपा लड्डू बना रखूँगी। और सफर में आसपास बिखेरूँगी।
*मैं सदा से संवेदन-शील हूँ। इस वर्ष में और भी मदद करने का प्रयास करुँगी। गरीबों को खाना, कपड़ा , ओढ़ने बिछाने का, दवाई आदि जो भी होगा करूँगी। और कुछ नहीं तो दो मीठे बोल के कुछ पैसे नहीं लगते।
*पता नहीं पढ़ाना मेरे जीवन में रच बस गया है। अब तीसरी पीढ़ी को भी मेरी ज़रूरत नहीं।
इस बारे में गरीब बच्चों को पढ़ाने की योजना है।
* तंदुरुस्ती हज़ार नियामत। अपनी सेहत के लिए व्यायाम प्राणायाम सादा भोजन के लिए मैं पूर्ण सतर्क रहूँगी। तन के साथ मन में कोई नकारात्मकता , कटुता नहीं आने दूँगी।
*यूँ तो मैं जल देश हित में कार्यरत समूह से जुडी हूँ। संस्था के लक्ष्यों के अनुरूप कार्य करने को प्रतिबद्ध रहूँगी। अपनी लेखनी की धार और तेज व तीखी करूँगी ।
*मैंने चाहा कि कुछ लम्हें जमा कर लूँ
पर वो सारे के सारे फिसलते रहे *
(शावर जी) जी, चाहती हूँ कि काश मैं भी कुछ ऐसा कर पाती। पर शायद रेत पर लिख दिए थे। चलो अब पत्थर पर तराशने का प्रयास करूँगी।
*एक मुकम्मल संकल्प मेरा है कि शहीदों के परिवारों के लिए कुछ करूँ।उन्हें पर्याप्त मुवावजे मिले। समाज में पूर्ण सम्मान भी मिले।
*एक मेरी ख्वाइश है कि सम्पूर्ण नारी जाति,बच्ची से वृद्धा तक के साथ ग़लत हरकतें ना हो। मैं समूह के साथियों से विनती करती हूँ कि इस दिशा में हम सब हाथ मिला कुछ करें।
* जो गलतियाँ जाने या अनजाने की हैं,उन्हें दोहराने का सवाल ही नहीं उठता। सीख लेकर कुछ नया करूँगी।
*इस डिजिटल दुनिया को मुट्ठी में लेना चाहूँगी।
सीख रही हूँ,कोशिशें जारी रहेँगी।
*कभी कभी मन अशांत हो जाता है कि कुछ काम ही नहीं है। यूँ मैं अपेक्षाएं नहीं रखती उपेक्षा से बचने के लिए। फिर भी मुझे कुछ करना होगा सिर्फ़ वर्तमान में जीने के लिए। सन्यासी सा तपी जीवन जीना चाहती हूँ।
*इस वर्ष अपने लेखन को और भी परिमार्जित करूँगी। फिर मैं शावर जी से कहूँ कि मेरी भी कोई छोटी मोटी बुक प्रकाशित करो ना।
*अंत में मैं यही कहूँगी ,,
" कर्म करूँ ऐसे भाई कि पड़े न फिर पछताना, पड़े न फिर पछताना। एक दिन तो धर्मराज को पड़ेगा मुहँ दिखलाना।"
"वक़्त है कम,दुर्गम मंज़िल, मुझे तेज़ कदम चलना होगा।"
" सर्वे भवन्तु सुखिनः "
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित