कवितागजल
ग़ज़ल
दिल तो ये रोया बहुत आंसू बहाए भी नहीं।
था यकीं चाहत पे इतना आजमाये भी नहीं
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हर ग़ज़ल के हर्फ में उनको ही हम लिखते रहे।
तल्ख़ियां थी इस कदर वो गुनगुनाए भी नहीं।
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याद माजी की लिए चलती रही मैं उम्र भर।
चल दिए पल भर ठहर वादा निभाये भी नहीं।
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हो गए रुसवा ना जाने वो मेरी किस बात पर।
क्या खता हुई थी मुझसे वो बताए भी नहीं।
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किस तरह उनके बिना गुजरी हमारी जिंदगी।
किस क़दर तड़पा था दिल वो जान पाए भी नहीं।
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दर्द भी जब दर्द से इक दिन तड़प के कह उठा।
ज़ख़्म थे अब भी हरे उनको दिखाए भी नहीं।
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आस के दीपक दुबारा फ़िर जलाए भी नहीं
गीत वो उलफत के हमने फिर से गाए भी नहीं।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश