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कविता - Maniben Dwivedi (Sahitya Arpan)

कवितागजल

कविता

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ग़ज़ल

दिल तो ये रोया बहुत आंसू बहाए भी नहीं।
था यकीं चाहत पे इतना आजमाये भी नहीं
**
हर ग़ज़ल के हर्फ में उनको ही हम लिखते रहे।
तल्ख़ियां थी इस कदर वो गुनगुनाए भी नहीं।
***
याद माजी की लिए चलती रही मैं उम्र भर।
चल दिए पल भर ठहर वादा निभाये भी नहीं।
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हो गए रुसवा ना जाने वो मेरी किस बात पर।
क्या खता हुई थी मुझसे वो बताए भी नहीं।
**
किस तरह उनके बिना गुजरी हमारी जिंदगी।
किस क़दर तड़पा था दिल वो जान पाए भी नहीं।
***
दर्द भी जब दर्द से इक दिन तड़प के कह उठा।
ज़ख़्म थे अब भी हरे उनको दिखाए भी नहीं।
***
आस के दीपक दुबारा फ़िर जलाए भी नहीं
गीत वो उलफत के हमने फिर से गाए भी नहीं।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश

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