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क्रिसमस/ बड़ा दिन - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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क्रिसमस/ बड़ा दिन

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क्रिसमस/ बड़ा दिन

भारत त्यौहारों का देश है। हम तो बस बहाना ही ढूंढते रहते हैं, उत्सव मनाने का। हाँ जी, बात है क्रिसमस की। लगभग चौथी सदी से विश्व के सौ देश यह मनाते आ रहे हैं। साधारण परिवार के जोसफ़ की पत्नी मरियम को एक दिव्य स्वप्न द्वारा कहा गया कि उसकी कोख से स्वयं प्रभु जन्मेंगे। और येरुशलम के बेथलहम में एक झोपड़ी में ईसा मसीह का जन्म हुआ। यह पावन दिवस क्रिसमस के रूप में मनाया जाने लगा।
कहते हैं कड़कती ठंड को विदाई देने के लिए इस दिन सूर्यदेव का आव्हान किया जाता है। प्रभु यीशू की जन्म तारीख के बारे में भ्रांतियां होने से पच्चीस दिसम्बर जन्मदिवस चुन लिया गया। यह उत्सव विभिन्न संतों की स्मृति में पूरे तेरह दिनों तक मनाया जाता है। चौइस पच्चीस की रात्रि को गिरिजाघरों में आराधना की जाती है। छब्बीस बॉक्सिंग डे, सत्ताईस संत जॉन के नाम।अट्ठाइस तारीख़ पवित्र दावतों के लिए रखी गई। उन्नतीस व तीस सन्त थॉमस व एलेवी के नाम से प्रार्थना की जाती है।एक जनवरी मरियम माँ को समर्पित व तीन जनवरी को प्रभु का नामकरण हुआ था।
ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह को ईश्वर का पैगम्बर मानते हैं। लेकिन कट्टरपंथियों ने इन्हें यहुदी क्रान्ति का जनक मान लिया। रोमन शासक पितालुस ने सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया।
उन्हें मदिरा पिला क्रॉस पर लटका उन्हीं की पीठ पर लाद दिया गया।
फिर भी ईसा ने प्रार्थना की, " हे प्रभु इन्हें माफ़ करना।ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।" पर चमत्कारिक रूप से ईसा तीन दिन बाद कब्र से जीवित निकले। चालीस दिन बाद उन्होनें प्रार्थना करते हुए प्राण त्यागे।
भारत में इसे " बड़े दिन " के रूप में मनाया जाता है। ग्रीष्म का आरम्भ इसी दिन से माना जाता है। दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती है। वैसे भी संक्रांति से तिल बराबर दिन बढ़ने लगता है। अब हमारी युवा पीढ़ी इस दिन को मौज़ मस्ती से मनाने लगी।
जन्म दिवस अर्थात खुशियाँ मनाने का दिन। अतः विभिन्न तरीकों से क्रिसमस ट्री रंग बिरंगी विद्युत व फूलों से सजाया जाता है। यह सदाबहार वृक्ष कभी मुरझाता नहीं।घरों में केक पुडिंग डोनट व मिठाइयां बनाई जाती हैं। बस समझिए दिवाली वाला माहौल।
परस्पर मिलना-जुलना, दावतें आदि चलता रहता है।
ईसामसीह के एक शिष्य व सहयोगी थे पादरी सन्त निकोलस। वे सबकी मदद करते और उपहार बाँटते रहते थे। लेकिन गुप्त रूप से।
उनके कारण ही सेंटा क्लाज़ का रिवाज़ शुरू हुआ। वे एक विशेष गाड़ी स्लेज द्वारा आते हैं। यह लाल नाक वाले आठ हिरनों व एक रुडोल्फ हिरन द्वारा खींची जाती है। पहले इनकी ड्रेस का रंग नीला हरा बैंगनी होता था। अब लाल व सफेद रंग है। मध्य रात्रि में वे बच्चों की मनपसन्द चीज़ें रख जाते हैं।
मेरा अभिमत है कि सेंटा क्लाज़ ऐसा चमत्कार करे कि बच्चों को सारे दुःख दर्द बाय बाय कर दे। प्रस्तुत हैं कुछ पंक्तियाँ,,,,
निकोलस सांटा क्लॉज
बाट जोहे संसार आपकी
ज़रूरत नहीं उपहारों की
जो बेवज़ह सजाते हैं घर
ठिठुरते बच्चे माँग रहे हैं
ये लाल गरम कोट व टोपे
ना भरेगा पेट चाकलेट से
दो जून की दो रोटियाँ दो
कामों में जुटे बालश्रमिक
उन्हें कलम-किताब देदो
मासूमाओं को सुरक्षा दो
भेड़ियों को टाँगों सूली पे
भृष्टाचारी आतंकियों को
बसादो फिनलैंड ज़मीं पर
प्रेम दया शांति संदेशों को
फैलादो हर कोने कोने में
आमीन
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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