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तुलसी की चाय - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

तुलसी की चाय

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तुलसी की चाय

वृद्धाश्रम में रोज़ एक चमचमाती कार से एक सज्जन आते । साथ में आया नौकर खाने का सामान व तुलसी वाली स्पेशल चाय सबको देकर चला जाता।
सब वृद्धों के चेहरों की रौनक देखते ही बनती। रानियों से हाव भाव वाली मानसी देवी तुलसी की चाय पीकर खुश हो जाती।
आश्रम का चौकीदार एक दिन पूछ ही बैठा," जी मालिक ये साब नियम से आकर सबको खिला पिला कर चल देते हैं। किसी से कभी मिलते नहीं।" मालिक बोले,"क्या बताऊँ,बरखुरदार ये मानसी जी के बेटे हैं। बीबी के कहने पर साब बेमन से माँ को यहाँ छोड़ गए।पर पछता कर साल भर बाद ही उन्हें फिर लेने आ गए। लेकिन माजी ने घर जाने के लिए साफ़ इंकार कर दिया।बस तभी से यह सिलसिला चल रहा है।
सरला मेहता

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी..! मजबूरी में घर में शांति बनाए रखने के लिए. अलग तो हो गये.. लेकिन..

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