कविताअतुकांत कविता
अरुण यह मधुमय देश हमारा
"प्रसाद का महाप्रसाद"
महान कवि प्रसाद का
यह काव्यमय प्रसाद है
कार्नेलिया के शब्दों में
महिमा कहाई देश की
विदेशी संस्कृतियों का
शरणस्थली है बन गया
मीठे मधुरम व्यवहार ने
कइयों को अपना लिया
वंदे तेरी पुलकित यामिनी
उषा लाली है कुमकुम सी
बिखरती तरु-फुनगियों पे
व तारे थककर सुस्ताते हैं
स्वर्णकलश ले उषा आती
मंदिर-घण्टियाँ हैं जगाती
खेतों को हलधर निकलते
दूध दुहने लगती यशोदाएँ
शीतल मन्द पवन बहती
रंगबिरंगे पंछी चहकते हैं
बापू बुद्ध महावीर देश में
वर्षा बूंदे करुणा जल की
गंग यमुन सी धाराएँ बहे
हिम किरीट माथे पे सजे
चरण पखारते तीन साग़र
उदार लंबी सी है तट रेखा
प्रेम शांति संधि-वार्ताएँ ही
भारतीय हथियार हैं बनते
विश्व-बंधुत्व नारे से हमने
पश्चिम में परचम लहराया
अरुण यह मधुमय
देश हमारा
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित