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दिल से दिल तक - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

दिल से दिल तक

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  • 3 Min Read

दिल से दिल तक

रूठती तुझसे प्रिये फिर भी मान जाती हूँ
भूलकर शिकवे सभी पल में मान जाती हूँ

अश्क़ आँखों में छुपाकर के सनम मेरे
तेरे ख़ातिर ही बस थोड़ा मुस्कुराती हूँ

हाले दिल किसको मैं सुनाऊँ मेरे हमदम
बाते शिकवों की भी मैं यूँ ही गुनगुनाती हूँ

तेरे आने से खिलने लगी हैं मेरी ख्वाइशें
चिढ़ाकर फूलों को थोड़ा ज़रा इतराती हूँ

खुशबू सजना की फ़िज़ा जबसे ले आई है
सौलह श्रृंगार करके ख़ुद ही संवर जाती हूँ

दरोदीवार भी मुझको ना रोक पाते हैं
दूर देशों से मैं उड़के चली आती हूँ

दरम्यां तेरे मेरे आ जाए ये सारा जहाँ
दिल से दिल तक की राह बना लाती हूँ
सरला मेहता

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत सुन्दर

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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