कविताअतुकांत कविता
.#2020
साहित्य अर्पण एक पहल
29 दिसंबर 2020
विषय-कहिये 2020 को अलविदा
विधा-कविता
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सताया,तड़पाया है वर्ष 2020
तूने रुलाया,दर्द दिया अभागा,
हँसी भूल गया,रातों को जागा,
कोविड-19 ने अभी न त्यागा।
बेरोजगार कर दिये कितने ही,
बे-मौत मारे गये कितने लोग,
जालिम,भयंकर ले आया रोग,
लाखों ही दंश रहे अभी भोग।
चल भाग जा,लौट नहीं आना,
वरना नहीं बख्शेगा ये जमाना,
हो चला अब एक वर्ष पुराना,
जा छुप कहीं मुंह ना दिखाना।
छीन रोजगार किया अत्याचार,
सड़कों पर भटके, कई हजार,
तेरा नहीं अब कर्ज रहा उधार,
अगर कोई है तो देंगे यूं उतार।
हस्तियां गई तेरे काल में गाल,
उद्योग धंधों का हुआ बदहाल,
देखी तेरी बढ़ते हुये वो चाल,
अब तो रक्षक है, प्रभु गोपाल।
अब तू जा रहा कहूं अलविदा,
होंगे पल दो पल में हम जुदा,
तेरी यादें यूं सताएंगी हर हाल,
क्योंकि तूं बनके, आया काल।
कितने जुदा कितने ही मिलाये,
कितने ही रुलाये, चंद हँसाये,
छुपके बैठे नौ माह घर छुपाये,
रोते रहे बर्बश हँसी को दबाये।
दुकानदार,किसान,कर्मी परेशान,
दुबके पड़े रहे करके बंद दुकान,
कोरोना का नाम सुन बंद मकान,
शांत रहे घर में बंद रही जुबान।
खैर जैसा भी बीता अच्छा बीता,
पढ़ी हमने घर बैठ भगवतगीता,
याद आये श्रीराम और मां सीता,
यज्ञ हवन कर मन को हमें जीता।
बच्चों के संग, बैठे उनको जाना,
समय दिया पूरा,पत्नी भी माना,
मिलने कोई जब घर पर आया,
दूर बैठाया हाथ नही मिललाया।
देश जहान की उन्नति गई रुक,
पहिये रुक गये नहीं छुक छुक,
विकास का पहिया रुका आज,
सुना जहां पर बस कोरोना राज।
अलविदा, अलविदा,अलविदा,
तू बनकर आया उपवन फिजा,
भूलेंगे नहीं तुझे सदियों के बाद,
पुस्तकों में रहेंगे दफन तेरे राज।
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स्वरचित, नितांत मौलिक
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*होशियार सिंह यादव
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