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लॉकडाउन - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कवितागजल

लॉकडाउन

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लॉकडाउन
साहेब देखो बेखबर
हर शख्स यहां दर-बदर।

मीलों पैदल जाना है
तब पहुंचेंगे अपने घर।

हाथ खाली पैर में छाले
पसीने से तर-बतर।

आगे कैसे गुजरेगी
बताने कोई मिले रहबर

लाखों चल पड़े उस रस्ते
जो न उनका रहगुजर।

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